' धन का आकर्षण बड़ा जबरदस्त है । जब लोभ सवार होता है, तो मनुष्य अंधा हो जाता है और पाप-पुण्य मे कुछ भी फर्क नहीं देखता । ' पैसे के लिए वह बुरे से बुरे कर्म करने के लिए उतारू हो जाता है और स्वयं भी उस पाप के फल से नष्ट हो जाता है ।
जो व्यक्ति पाप से बचना चाहते हैं, उन्हें लोभ-लालच से सावधान रहना चाहिए । जब भी लालच का अवसर आये तो बुद्धि को सतर्क रखना चाहिए । अन्यायपूर्वक धन कमाने से पहले एक नजर अपने बैंक-बैलेंस, अपनी जमा पूंजी पर डालनी चाहिए-- क्या उसका उपभोग कर लिया ?
फिर एक नजर अपने शरीर पर ! क्या सारे धन के उपभोग की सामर्थ्य है ?
एक भरपूर द्रष्टि अपने परिवार पर---- ऐसे धन का परिवार के स्वास्थ्य और जीवन की दिशा पर क्या प्रभाव पड़ रहा है ?
जब मनुष्यों की विवेकद्रष्टि जाग्रत होगी, वे इस सच को स्वीकार करेंगे कि अनीति, अन्याय और अधर्म से प्रारम्भ में लोग तेजी से बढ़ते हैं, पर अंत उनका अनिष्टकारी, दुःखद होता है , तभी लालच पर नियंत्रण संभव है ।
जो व्यक्ति पाप से बचना चाहते हैं, उन्हें लोभ-लालच से सावधान रहना चाहिए । जब भी लालच का अवसर आये तो बुद्धि को सतर्क रखना चाहिए । अन्यायपूर्वक धन कमाने से पहले एक नजर अपने बैंक-बैलेंस, अपनी जमा पूंजी पर डालनी चाहिए-- क्या उसका उपभोग कर लिया ?
फिर एक नजर अपने शरीर पर ! क्या सारे धन के उपभोग की सामर्थ्य है ?
एक भरपूर द्रष्टि अपने परिवार पर---- ऐसे धन का परिवार के स्वास्थ्य और जीवन की दिशा पर क्या प्रभाव पड़ रहा है ?
जब मनुष्यों की विवेकद्रष्टि जाग्रत होगी, वे इस सच को स्वीकार करेंगे कि अनीति, अन्याय और अधर्म से प्रारम्भ में लोग तेजी से बढ़ते हैं, पर अंत उनका अनिष्टकारी, दुःखद होता है , तभी लालच पर नियंत्रण संभव है ।
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