गोरक्षा की समस्या आज जिस प्रकार जटिल बनी हुई है, वैसी ही स्वामी दयानंद सरस्वती जी के समय में भी थी । वे गौ को मनुष्य जाति के लिए परम हितकारी मानते थे । इसीलिए उसकी रक्षा के लिए सदैव प्रेरणा देते रहते थे । बूढ़ी गायों को गोशाला में रखकर कुछ लोग गोरक्षा का जिस प्रकार लाभ लेते व चंदा एकत्र करते थे, उससे भी वे वाकिफ थे ।
वे कहते थे कि वास्तविक गोरक्षा तो यह है कि अधिकाधिक दूध देने वाली गौओं और खेती का कार्य उत्तम रीति से कर सकने योग्य बैलों की संख्या में यथाशक्ति वृद्धि कर कृषि कार्य में उनकी मदद ली जाये । इस विषय का विस्तार विवेचन उन्होंने ' गौ करूणानिधि ' नामक पुस्तिका में किया था और इस संबंध में एक विज्ञापन छपवाकर सहस्त्रों हस्ताक्षर महारानी विक्टोरिया के पास भिजवाये थे
वे कहते थे कि वास्तविक गोरक्षा तो यह है कि अधिकाधिक दूध देने वाली गौओं और खेती का कार्य उत्तम रीति से कर सकने योग्य बैलों की संख्या में यथाशक्ति वृद्धि कर कृषि कार्य में उनकी मदद ली जाये । इस विषय का विस्तार विवेचन उन्होंने ' गौ करूणानिधि ' नामक पुस्तिका में किया था और इस संबंध में एक विज्ञापन छपवाकर सहस्त्रों हस्ताक्षर महारानी विक्टोरिया के पास भिजवाये थे
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