अंग्रेजी शासन में वे एक ऐसे उच्च पदाधिकारी के रुप में जाने जाते हैं जिन्होंने भारतीय राष्ट्र निर्माण की कल्पना की थी और उसके लिए आखिरी दम तक प्रयत्न किया था ।
रमेशचन्द्र दत्त का जन्म एक उच्च शिक्षित और संपन्न परिवर में हुआ था | उनके पिता डिप्टीकमिश्नर थे । अपने पिता के साथ उन्हें बंगाल, बिहार, उड़ीसा घूमने का मौका मिला । इन यात्राओं में बालक दत्त ने भारतीय जन-जीवन में घोर निराशा और मनुष्य का मनुष्य के द्वारा उत्पीड़न देखा ।
जब वे आई. सी. एस. की परीक्षा में भाग लेने इंग्लैंड गये, वहां उन्हें ग्लैडस्टन, डिजरैली, जानब्राईट, हेनरी फासेट, जान स्टुअर्ट मिल और चार्ल्स डिफैन्स जैसे राज नेताओं और साहित्यकारों के संपर्क में आने का अवसर मिला । इन व्यक्तियों से मिलने के बाद दत्त के ह्रदय में भी ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई कि मुझे भी भारतीयता का गौरव बढ़ाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए । उनके ह्रदय में आवाज उठी--- 'भारत महान है, यदि उसकी सोयी आत्मा जाग उठे, यहाँ के नागरिकों को गौरवपूर्ण अतीत से परिचित करा दिया जाये और उन्हे प्रेरणा दी जाये तो हम एक शक्ति के रूप मे, स्वयं एक योग्य व्यक्ति के रूप में अपनी प्रतिष्ठा बना सकते हैं । ' इसी भावना से उन्होंने आई. सी. एस. की परीक्षा दी, उसमे चुने गये और उन्हें असिस्टेंट मजिस्ट्रेट के पद पर नियुक्त किया गया ।
इस पद पर काम करते समय उन्होंने अनुभव किया कि अंग्रेज पदाधिकारियों की द्रष्टि में एक भारतीय कोई भी उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य नहीं कर सकता । उन्होंने अंग्रेजों की इस धारणा को बदलने का निश्चय किया । 1876 में जब गँगा में भीषण बाढ़ आई, चालीस हजार जाने गईं, शासन तंत्र बुरी तरह लड़खड़ा गया । तब वहां पुन:व्यवस्था के लिए रमेशचन्द्र दत्त कों भेजा गया, उन्होंने इतनी कुशलता से कार्य किया कि अंग्रेज अधिकारी भी देखकर दंग रह गये । जब वहां हैजा फैला तब उनहोने जिस सेवा-भाव से कार्य किया जिसे देखकर अंग्रेजो को अपनी धारणा बदलनी पड़ी |
फिर उन्होंने शासकीय सेवा से त्यागपत्र दे दिया और साहित्य के माध्यम से भारत के महान अतीत से जन-जन को परिचित करने में संलग्न हो गये । । उनका सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रन्थ 'प्राचीन भारत की गाथाएं ' प्रकाशित हुआ जिसने बुद्धिजीवी वर्ग को अपनी धारणा बदलने पर विवश किया । अन्य कई ग्रन्थ उन्होंने लिखे, उनकी भावनाएं, साहित्य व देशभक्ति को भुलाना कठिन है ।
रमेशचन्द्र दत्त का जन्म एक उच्च शिक्षित और संपन्न परिवर में हुआ था | उनके पिता डिप्टीकमिश्नर थे । अपने पिता के साथ उन्हें बंगाल, बिहार, उड़ीसा घूमने का मौका मिला । इन यात्राओं में बालक दत्त ने भारतीय जन-जीवन में घोर निराशा और मनुष्य का मनुष्य के द्वारा उत्पीड़न देखा ।
जब वे आई. सी. एस. की परीक्षा में भाग लेने इंग्लैंड गये, वहां उन्हें ग्लैडस्टन, डिजरैली, जानब्राईट, हेनरी फासेट, जान स्टुअर्ट मिल और चार्ल्स डिफैन्स जैसे राज नेताओं और साहित्यकारों के संपर्क में आने का अवसर मिला । इन व्यक्तियों से मिलने के बाद दत्त के ह्रदय में भी ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई कि मुझे भी भारतीयता का गौरव बढ़ाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए । उनके ह्रदय में आवाज उठी--- 'भारत महान है, यदि उसकी सोयी आत्मा जाग उठे, यहाँ के नागरिकों को गौरवपूर्ण अतीत से परिचित करा दिया जाये और उन्हे प्रेरणा दी जाये तो हम एक शक्ति के रूप मे, स्वयं एक योग्य व्यक्ति के रूप में अपनी प्रतिष्ठा बना सकते हैं । ' इसी भावना से उन्होंने आई. सी. एस. की परीक्षा दी, उसमे चुने गये और उन्हें असिस्टेंट मजिस्ट्रेट के पद पर नियुक्त किया गया ।
इस पद पर काम करते समय उन्होंने अनुभव किया कि अंग्रेज पदाधिकारियों की द्रष्टि में एक भारतीय कोई भी उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य नहीं कर सकता । उन्होंने अंग्रेजों की इस धारणा को बदलने का निश्चय किया । 1876 में जब गँगा में भीषण बाढ़ आई, चालीस हजार जाने गईं, शासन तंत्र बुरी तरह लड़खड़ा गया । तब वहां पुन:व्यवस्था के लिए रमेशचन्द्र दत्त कों भेजा गया, उन्होंने इतनी कुशलता से कार्य किया कि अंग्रेज अधिकारी भी देखकर दंग रह गये । जब वहां हैजा फैला तब उनहोने जिस सेवा-भाव से कार्य किया जिसे देखकर अंग्रेजो को अपनी धारणा बदलनी पड़ी |
फिर उन्होंने शासकीय सेवा से त्यागपत्र दे दिया और साहित्य के माध्यम से भारत के महान अतीत से जन-जन को परिचित करने में संलग्न हो गये । । उनका सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रन्थ 'प्राचीन भारत की गाथाएं ' प्रकाशित हुआ जिसने बुद्धिजीवी वर्ग को अपनी धारणा बदलने पर विवश किया । अन्य कई ग्रन्थ उन्होंने लिखे, उनकी भावनाएं, साहित्य व देशभक्ति को भुलाना कठिन है ।
No comments:
Post a Comment