सहित्यकार युग-द्रष्टा व युग-निर्माता होता है, यदि वह संसार के विभिन्न प्रलोभनों से मुक्त होकर अपने साधन पथ पर चले तो वह समाज के साथ बहुत बड़ा उपकार कर सकता है ।
बन्दूक लेकर शत्रुओं को पीछे खदेड़ने वाला तो सैनिक होता ही है पर सैनिकों में जान फूँककर आगे बढ़ाने की प्रेरणा देने वला, कलम रुपी अस्त्र से पौरुष की आग़ बरसाने वाला साहित्यकार भी किसी प्रकार सैनिक से कम महत्व का नहीं होता | नाजी सेनाओं के आक्रमण के समय एहरेनबुर्ग ने एक लेख रुसी समाचार पत्रों में प्रकाशित कराया जिसका शीर्षक था--- ' विजय हमारी ही होगी । '
उस आग उगलने वाले लेख को जिस-जिस व्यक्ति ने भी पढ़ा, वह देश रक्षा के लिए मर मिटने को तैयार हो गया | उस लेख में सैनिक के ह्रदय को किले के समान सुद्रढ़ बताया गया था । देश की राजधानी को टैंकों की सहायता से नहीं वरन सैनिकों की शूरता और सहन शक्ति के आधार से ही बचाने की बात कही थी । फासिस्ट जिस मार्ग से आगे बढ़ रहे हैं, भले ही वह मास्को पहुंचाता हो, पर हम लोग अपनी वीरता से शत्रु सैनिकों को यमलोक पहुँचा कर रहेंगे ।
इस तरह के वीरतापूर्ण उद्बोधन जिस सैनिक ने भी पढ़े वह पूर्ण मनोबल से शत्रु को पीछे हटाने के लिए तैयार हो गया ।
राजनीतिक कारणों से एक बार उन्हें बेल्जियम जेल भेज दिया गया । उस जेल में लोग एक-एक दिन गिन-गिनकर काटते थे वहां एहरेनबुर्ग ने अपने मानसिक संतुलन को कायम रख कर एक माह की अवधि में ही अपने प्रथम उपन्यास ' जो लियो जुरेनितो ' की रचना कर डाली । उनका ह्रदय साहित्यकार का था तो मस्तिष्क कुशल राजनीतिज्ञ का था । अपने जानदार साहित्य के कारण वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के ख्यातिप्राप्त साहित्यकार बन गये ।
बन्दूक लेकर शत्रुओं को पीछे खदेड़ने वाला तो सैनिक होता ही है पर सैनिकों में जान फूँककर आगे बढ़ाने की प्रेरणा देने वला, कलम रुपी अस्त्र से पौरुष की आग़ बरसाने वाला साहित्यकार भी किसी प्रकार सैनिक से कम महत्व का नहीं होता | नाजी सेनाओं के आक्रमण के समय एहरेनबुर्ग ने एक लेख रुसी समाचार पत्रों में प्रकाशित कराया जिसका शीर्षक था--- ' विजय हमारी ही होगी । '
उस आग उगलने वाले लेख को जिस-जिस व्यक्ति ने भी पढ़ा, वह देश रक्षा के लिए मर मिटने को तैयार हो गया | उस लेख में सैनिक के ह्रदय को किले के समान सुद्रढ़ बताया गया था । देश की राजधानी को टैंकों की सहायता से नहीं वरन सैनिकों की शूरता और सहन शक्ति के आधार से ही बचाने की बात कही थी । फासिस्ट जिस मार्ग से आगे बढ़ रहे हैं, भले ही वह मास्को पहुंचाता हो, पर हम लोग अपनी वीरता से शत्रु सैनिकों को यमलोक पहुँचा कर रहेंगे ।
इस तरह के वीरतापूर्ण उद्बोधन जिस सैनिक ने भी पढ़े वह पूर्ण मनोबल से शत्रु को पीछे हटाने के लिए तैयार हो गया ।
राजनीतिक कारणों से एक बार उन्हें बेल्जियम जेल भेज दिया गया । उस जेल में लोग एक-एक दिन गिन-गिनकर काटते थे वहां एहरेनबुर्ग ने अपने मानसिक संतुलन को कायम रख कर एक माह की अवधि में ही अपने प्रथम उपन्यास ' जो लियो जुरेनितो ' की रचना कर डाली । उनका ह्रदय साहित्यकार का था तो मस्तिष्क कुशल राजनीतिज्ञ का था । अपने जानदार साहित्य के कारण वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के ख्यातिप्राप्त साहित्यकार बन गये ।
बहुत सुन्दर लेख |
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