वे पहले सिद्धांतकार, परीक्षणकार थे जिन्होंने भूद्रश्य वास्तुकला पर कार्य किया था । अमेरिका के सर्वप्रथम और सर्वोतम भूद्रश्य-वास्तुकार ओमस्तेद ने आज से एक सौ पचास वर्ष पूर्व ही आज की विभीषिकाओं को समझ लिया था, जो बढ़ते हुए यंत्रीकरण, औद्दोगीकरण, उद्दोगों और बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण मनुष्य के सामने उपस्थित होने वाली थीं ।
1850 के दिनों में जब महानगरों के निर्माण की प्रक्रिया चल रही थी, उन्होंने उस भयंकर स्थिति की कल्पना कर ली थी जो गगनचुंबी इमारतों और महानगरों में कैद होकर रह जाने वाले मानवों की आत्मा को भोगनी होंगी और वह पुन: प्रकृति से अपना संबंध जोड़ने के लिए बिलख उठेगा |
वे अनूठे वास्तुशिल्पी थे । उनका केनवास वह खुली धरा थी ---- और धरा प्राय: वह दलदली क्षेत्र अथवा नगरों के आस-पास के वे कूड़े-करकट के ढेर, जिन्हें बेकार समझ कर छोड़ दिया था । इसी विकृत को उन्होंने सौन्दर्य व लालित्य प्रदान किया । महानगरों के मध्य उन्होंने सजे-संवरे ग्रामीण सौंदर्य की स्रष्टि करके अपनी कला-प्रतिभा को उजागर कर दिया ।
1850 में उन्होंने न्यूयार्क नगर के लिए उद्दान स्थापित करने की एक योजना प्रस्तुत की । उनकी इस योजना को क्रियान्वित किया गया जों बहुत ही सफल रही । इस सफलता के बाद निर्माण का एक दौर चल पड़ा । उन्होंने 17 से भी अधिक नगरोद्दान, वृक्षों से सुसज्जित कई चौड़े जनपथ, कॉलेजों, भवनों और संस्थानों के सुन्दर प्लान बनाये और उन्हें कार्यान्वित किया ।
ओमस्तेद ने अपने बारे में लिखा है---- " मैं पहले यह कल्पना भी नहीं करता था कि मैं एक भूद्रश्य वास्तुकार बनूँगा किन्तु यह मेरी आंतरिक क्षुधा थी जिसे मैं पहले समझ नहीं सका । "
1850 के दिनों में जब महानगरों के निर्माण की प्रक्रिया चल रही थी, उन्होंने उस भयंकर स्थिति की कल्पना कर ली थी जो गगनचुंबी इमारतों और महानगरों में कैद होकर रह जाने वाले मानवों की आत्मा को भोगनी होंगी और वह पुन: प्रकृति से अपना संबंध जोड़ने के लिए बिलख उठेगा |
वे अनूठे वास्तुशिल्पी थे । उनका केनवास वह खुली धरा थी ---- और धरा प्राय: वह दलदली क्षेत्र अथवा नगरों के आस-पास के वे कूड़े-करकट के ढेर, जिन्हें बेकार समझ कर छोड़ दिया था । इसी विकृत को उन्होंने सौन्दर्य व लालित्य प्रदान किया । महानगरों के मध्य उन्होंने सजे-संवरे ग्रामीण सौंदर्य की स्रष्टि करके अपनी कला-प्रतिभा को उजागर कर दिया ।
1850 में उन्होंने न्यूयार्क नगर के लिए उद्दान स्थापित करने की एक योजना प्रस्तुत की । उनकी इस योजना को क्रियान्वित किया गया जों बहुत ही सफल रही । इस सफलता के बाद निर्माण का एक दौर चल पड़ा । उन्होंने 17 से भी अधिक नगरोद्दान, वृक्षों से सुसज्जित कई चौड़े जनपथ, कॉलेजों, भवनों और संस्थानों के सुन्दर प्लान बनाये और उन्हें कार्यान्वित किया ।
ओमस्तेद ने अपने बारे में लिखा है---- " मैं पहले यह कल्पना भी नहीं करता था कि मैं एक भूद्रश्य वास्तुकार बनूँगा किन्तु यह मेरी आंतरिक क्षुधा थी जिसे मैं पहले समझ नहीं सका । "
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