*/*/\]उनका विश्वास था कि ईश्वर जन-जन में बसता है, केवल सत्य, प्रेम, दया और शांति ही वे सीढ़ियाँ हैं, जिनके सहारे हम अपने आपको श्रेष्ठ बना सकते हैं | '
केरल के एक छोटे से गाँव में श्री नारायण गुरु का जन्म जिस ईषव ( निम्न जाति ) जाति में हुआ था, वह उस समय विद्दोपार्जन के अधिकार से वंचित थी, उसे आम रास्तों पर चलना भी वर्जित था
सभी लोग निम्न जाति के लोगों से दूर रहते और उन्हें घृणा की द्रष्टि से देखते थे । उस समय केरल में छुआछूत का स्वरुप इतना भयंकर था कि स्वामी विवेकानंद ने इसे धरती पर का पागलखाना कहा है । मनुष्य-मनुष्य को पशु से भी बदतर समझता था । इस ज्वाला को श्री नारायण गुरू की तपस्या के जल ने ही शांत किया ।
वे समाज सुधारक थे, उन्होंने जन-मानस में व्याप्त घोर निराशा और हीन भावना को बड़े सौम्य व शीतल ढ़ंग से सुधार दिया और केरल के अभिशाप रुढ़िवाद, जाति-भेद आदि भेदभाव को मिटाकर सत्य,स्नेह और शांति कि त्रिवेणी बहा दी |
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