' अपने पुरुषार्थ, पराक्रम और शक्ति का सर्वहित के लिये समर्पण करना--- व्यक्ति को इतिहास पुरुष बनाने में समर्थ होता है । '
सम्राट स्कन्दगुप्त की मृत्यु के बाद मगध का सम्राज्य उन जैसे सुयोग्य शासक के हाथ में नहीं रहा अत: हूणों को भारत में घुसने का मार्ग मिल गया । वे लूटमार, अत्याचार करते हुए आगे बढ़ते गये, तक्षशिला विश्वविद्यालय के विशाल पुस्तकालय को उन्होंने जलाकर खाक कर डाला
मालवा प्रदेश के एक छोटे से प्रदेश के अधिपति यशोधर्मा से यह न देखा गया । यशोधर्मा ने छोटे-छोटे राजाओं से जो मगध सम्राट को कमजोर देख स्वतंत्र हो गये थे, अनुरोध किया कि वे हूणों को भारत भूमि से बाहर खदेड़ने में उसकी सहायता करें । नेता के उठ खड़े होते ही देखते ही देखते एक विशाल सेना खड़ी हो गई ।
यशोधर्मा छोटे से प्रदेश का अधिपति होते हुए भी भावनाओं और विचारों से महान था । इस वीर ने हूण नेता मिहिरकुल को पराजित कर देश से बाहर करने की प्रतिज्ञा की । दशपुर (वर्तमान मंदसौर) नामक स्थान पर घमासान युद्ध हुआ । हूण नेता मिहिरकुल बंदी बना लिया गया, उसकी सेना भाग खड़ी हुई । वह यशोधर्मा के पांवों पर गिरकर प्राणों की भीख मांगने लगा । मगध के बौद्ध सम्राट को उस पर दया आ गई, उन्होंने यशोधर्मा से उसे प्राणदान देने का अनुरोध किया । मिहिरकुल को प्राणदान मिला लेकिन इस शर्त पर कि हूण भारत की सीमा के बाहर निकल जायें । हूणों को पराजित करने के कारण यशोधर्मा की यश पताका सारे देश में फहराने लगी | एक बार फिर उन्होंने सेना सजाकर हूणों को छानकर देश से बाहर निकाला और मिहिरकुल को सिन्धु के तट पर ले जाकर छोड़ा । वीरवर सम्राट यशोधर्मा का यह यशस्वी कार्य उन्हें प्रात: स्मरणीय बना गया ।
सम्राट स्कन्दगुप्त की मृत्यु के बाद मगध का सम्राज्य उन जैसे सुयोग्य शासक के हाथ में नहीं रहा अत: हूणों को भारत में घुसने का मार्ग मिल गया । वे लूटमार, अत्याचार करते हुए आगे बढ़ते गये, तक्षशिला विश्वविद्यालय के विशाल पुस्तकालय को उन्होंने जलाकर खाक कर डाला
मालवा प्रदेश के एक छोटे से प्रदेश के अधिपति यशोधर्मा से यह न देखा गया । यशोधर्मा ने छोटे-छोटे राजाओं से जो मगध सम्राट को कमजोर देख स्वतंत्र हो गये थे, अनुरोध किया कि वे हूणों को भारत भूमि से बाहर खदेड़ने में उसकी सहायता करें । नेता के उठ खड़े होते ही देखते ही देखते एक विशाल सेना खड़ी हो गई ।
यशोधर्मा छोटे से प्रदेश का अधिपति होते हुए भी भावनाओं और विचारों से महान था । इस वीर ने हूण नेता मिहिरकुल को पराजित कर देश से बाहर करने की प्रतिज्ञा की । दशपुर (वर्तमान मंदसौर) नामक स्थान पर घमासान युद्ध हुआ । हूण नेता मिहिरकुल बंदी बना लिया गया, उसकी सेना भाग खड़ी हुई । वह यशोधर्मा के पांवों पर गिरकर प्राणों की भीख मांगने लगा । मगध के बौद्ध सम्राट को उस पर दया आ गई, उन्होंने यशोधर्मा से उसे प्राणदान देने का अनुरोध किया । मिहिरकुल को प्राणदान मिला लेकिन इस शर्त पर कि हूण भारत की सीमा के बाहर निकल जायें । हूणों को पराजित करने के कारण यशोधर्मा की यश पताका सारे देश में फहराने लगी | एक बार फिर उन्होंने सेना सजाकर हूणों को छानकर देश से बाहर निकाला और मिहिरकुल को सिन्धु के तट पर ले जाकर छोड़ा । वीरवर सम्राट यशोधर्मा का यह यशस्वी कार्य उन्हें प्रात: स्मरणीय बना गया ।
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