प्रो. महेश्वरी के विज्ञान-साधना की कहानी एक कर्मयोगी के जीवन की गीता है । जीवन में उन्होंने यह कभी नही जाना कि छुट्टी का दिन भी होता है | तीन बजे रात को उठ जाना तथा दस बजे से पहले नहीं सोना यह क्रम पूरे जीवन भर उन्होंने निभाया । उन्हें अपने जीवन में प्रेरणा अपने गुरु
डॉ. विनफिल्ड डजन से मिली जो एक अमेरिकन मिशनरी थे । उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति अपनी सब सुविधाओं और भावी प्रगति के सुअवसरों को छोड़कर ज्ञान-दान के लिए अमेरिका से यहां आ सकता है तो क्या मैं इतना भावनाहीन हूँ कि मैं अपने देश की भावी पीढ़ी को कुछ न दे सकूँ ।
सेवा-साधक डॉ. डजन ने युवक पंचानन महेश्वरी की भावनाओं को समझा और उन्हें कर्मनिष्ठा तथा लगन से आगे बढ़ने का उत्साह दिलाया ।
प्रो. महेश्वरी ने सिवारों से लेकर फूल-पौधों तक हजारों स्लाइड बना डालीं, डेढ़ सौ के लगभग शोध-पत्र प्रकाशित किये | पुष्प-पौधों के 82 कुलों में भ्रूण परिवर्धन किया । चन्दन-कुल का भ्रूण वैज्ञानिक अध्ययन जो कठिनतम माना जाता है उसे पूरा करके बड़े-बड़े वनस्पति वैज्ञानिको का भ्रम दूर कर दिया । भारत में ही पढ़े और भारत में ही शोध करने वाले प्रो. महेश्वरी अपने इन महान कार्यों से विश्व के अग्रणी वनस्पति-विज्ञानी माने गये |
परखनली में पराग केसर तथा पुंकेसर का कृत्रिम मिलन करके बीज के निर्माण की सफलता पाने वाले विश्व के प्रथम विज्ञानवेत्ता प्रो. महेश्वरी बड़े सीधे, मृदुभाषी, विनम्र तथा अनुशासन प्रिय थे ।
'फाइटो मार्फोलाजी ' नामक अंतर्राष्ट्रीय-वैज्ञानिक पत्रिका के वे संस्थापक, संपादक रहे । पादप-भ्रूण-विज्ञान के महापंडित के रूप में सारे विश्व के वैज्ञानिक उनका सम्मान करते थे ।
वे नवनिर्माण के स्वपनद्रष्टा थे | उन्होंने वैज्ञानिकों को बताया कि पहले धरती पर जो कुछ उपलब्ध है उन्ही के द्वारा धरती पर स्वर्ग बसाया जाये न कि परमाणु शस्त्रों की होड़ में वैज्ञानिक प्रतिभा का दुरूपयोग किया जाये । विज्ञान के माध्यम से उन्होंने विश्व तथा राष्ट्र की महती सेवा की ।
डॉ. विनफिल्ड डजन से मिली जो एक अमेरिकन मिशनरी थे । उन्होंने देखा कि एक व्यक्ति अपनी सब सुविधाओं और भावी प्रगति के सुअवसरों को छोड़कर ज्ञान-दान के लिए अमेरिका से यहां आ सकता है तो क्या मैं इतना भावनाहीन हूँ कि मैं अपने देश की भावी पीढ़ी को कुछ न दे सकूँ ।
सेवा-साधक डॉ. डजन ने युवक पंचानन महेश्वरी की भावनाओं को समझा और उन्हें कर्मनिष्ठा तथा लगन से आगे बढ़ने का उत्साह दिलाया ।
प्रो. महेश्वरी ने सिवारों से लेकर फूल-पौधों तक हजारों स्लाइड बना डालीं, डेढ़ सौ के लगभग शोध-पत्र प्रकाशित किये | पुष्प-पौधों के 82 कुलों में भ्रूण परिवर्धन किया । चन्दन-कुल का भ्रूण वैज्ञानिक अध्ययन जो कठिनतम माना जाता है उसे पूरा करके बड़े-बड़े वनस्पति वैज्ञानिको का भ्रम दूर कर दिया । भारत में ही पढ़े और भारत में ही शोध करने वाले प्रो. महेश्वरी अपने इन महान कार्यों से विश्व के अग्रणी वनस्पति-विज्ञानी माने गये |
परखनली में पराग केसर तथा पुंकेसर का कृत्रिम मिलन करके बीज के निर्माण की सफलता पाने वाले विश्व के प्रथम विज्ञानवेत्ता प्रो. महेश्वरी बड़े सीधे, मृदुभाषी, विनम्र तथा अनुशासन प्रिय थे ।
'फाइटो मार्फोलाजी ' नामक अंतर्राष्ट्रीय-वैज्ञानिक पत्रिका के वे संस्थापक, संपादक रहे । पादप-भ्रूण-विज्ञान के महापंडित के रूप में सारे विश्व के वैज्ञानिक उनका सम्मान करते थे ।
वे नवनिर्माण के स्वपनद्रष्टा थे | उन्होंने वैज्ञानिकों को बताया कि पहले धरती पर जो कुछ उपलब्ध है उन्ही के द्वारा धरती पर स्वर्ग बसाया जाये न कि परमाणु शस्त्रों की होड़ में वैज्ञानिक प्रतिभा का दुरूपयोग किया जाये । विज्ञान के माध्यम से उन्होंने विश्व तथा राष्ट्र की महती सेवा की ।
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