' मनुष्य जीवन तो पानी का बुलबुला है | वह पैदा भी होता है और मर भी जाता है किन्तु शाश्वत रहते हैं उसके कर्म ओर विचार । हर मनुष्य की एक आत्मा होती है, जो दूसरों को सुखी बनाने, सेवा करने, सहायता देने, सही राह बताने में अधिक सुख, शान्ति और सन्तोष अनुभव करती है ।
सद्विचार ही मनुष्यों को सद्कर्मों को करने के लिए प्रेरित करते हैं और सत्कर्म ही मनुष्य का मनुष्यत्व सिद्ध करते हैं । ये विचार ही नये-नये मस्तिष्कों में घुसकर, ह्रदय में प्रभाव जमाकर मनुष्य को देवता बना देते हैं और राक्षस भी । जैसे विचार होंगे मनुष्य वैसा ही बनता जायेगा ।
सद्विचार ही मनुष्यों को सद्कर्मों को करने के लिए प्रेरित करते हैं और सत्कर्म ही मनुष्य का मनुष्यत्व सिद्ध करते हैं । ये विचार ही नये-नये मस्तिष्कों में घुसकर, ह्रदय में प्रभाव जमाकर मनुष्य को देवता बना देते हैं और राक्षस भी । जैसे विचार होंगे मनुष्य वैसा ही बनता जायेगा ।
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