' साधन तथा प्रभुत्व अपने आप में महान नहीं हैं वरन उनका सदुपयोग करके ही उन्हें महत्ता दिलाई जा सकती है ।
बालाजी विश्वनाथ आरम्भ मे पेशवा के कार्यालय में मामूली क्लर्क की हैसियत से काम करते थे, उन्होंने मालगुजारी वसूलने का कार्य किया किन्तु अपनी कार्यकुशलता, योग्यता, सूझ-बूझ और राष्ट्र-निष्ठा के कारण महाराष्ट्र के यशस्वी पेशवा बने । बालाजी वीर और योग्य व्यक्ति थे । इससे भी ऊपर उनकी विशेषता यह थी कि वे हिन्दू महाराष्ट्र को प्राणों से भी प्रिय मानते थे ।
पेशवा बनने के बाद वे सुखोपभोग में नहीं डूब गये । उच्च पद पर रहते हुए भी वे स्वभाव, व्यवहार और ह्रदय से छोटे लोगों के प्रति हमदर्द ही बने रहे । वे जब दिल्ली के मुगल शहंशाह फरुखशियर की प्रार्थना पर उसके साथ सन्धि कर उसे रक्षा का वचन देने के लिए सेना सहित दिल्ली जा रहे थे तब की बात है-----
उन्होंने अपने सेनाधिकारियों को आदेश दे रखे थे कि मार्ग में पड़ने वाले खेतों में से अन्न या घास का एक तिनका भी अपनी सेना द्वारा क्षतिग्रस्त नही होना चाहिए । किन्तु उनके एक अभिमानी सरदार मल्हारराव होल्कर ने उनकी यह आज्ञा नहीं ,मानी और अपने घोड़ों के लिए एक किसान की खड़ी फसल कटवा डाली तथा उसे मारा-पीटा भी ।
इस बात की सूचना जब बालाजी को मिली तो वे बड़े कुपित हुए इसलिए नही कि उनकी आज्ञा का उल्लंघन हुआ वरन इसलिए कि एक गरीब आदमी का अहित किया गया । अत: उन्होंने मल्हारराव की सारी संपति जब्त करके और किसान को उसकी फसल तथा मार-पीट का पूरा हर्जाना दे देने का निर्णय दे दिया । कृषक उनकी ईस न्यायप्रियता पर बड़ा प्रसन्न हुआ और मल्हारराव कि बुद्धि भी ठिकाने आ गई, दण्डस्वरुप उसका ओहदा भी घटा दिया गया ।
पेशवा बालाजी विश्वनाथ गरीबों ओर दुर्बलों के संरक्षक थे । इतिहास पुरुष बाजीराव इन्ही के पुत्र थे ।
बालाजी विश्वनाथ आरम्भ मे पेशवा के कार्यालय में मामूली क्लर्क की हैसियत से काम करते थे, उन्होंने मालगुजारी वसूलने का कार्य किया किन्तु अपनी कार्यकुशलता, योग्यता, सूझ-बूझ और राष्ट्र-निष्ठा के कारण महाराष्ट्र के यशस्वी पेशवा बने । बालाजी वीर और योग्य व्यक्ति थे । इससे भी ऊपर उनकी विशेषता यह थी कि वे हिन्दू महाराष्ट्र को प्राणों से भी प्रिय मानते थे ।
पेशवा बनने के बाद वे सुखोपभोग में नहीं डूब गये । उच्च पद पर रहते हुए भी वे स्वभाव, व्यवहार और ह्रदय से छोटे लोगों के प्रति हमदर्द ही बने रहे । वे जब दिल्ली के मुगल शहंशाह फरुखशियर की प्रार्थना पर उसके साथ सन्धि कर उसे रक्षा का वचन देने के लिए सेना सहित दिल्ली जा रहे थे तब की बात है-----
उन्होंने अपने सेनाधिकारियों को आदेश दे रखे थे कि मार्ग में पड़ने वाले खेतों में से अन्न या घास का एक तिनका भी अपनी सेना द्वारा क्षतिग्रस्त नही होना चाहिए । किन्तु उनके एक अभिमानी सरदार मल्हारराव होल्कर ने उनकी यह आज्ञा नहीं ,मानी और अपने घोड़ों के लिए एक किसान की खड़ी फसल कटवा डाली तथा उसे मारा-पीटा भी ।
इस बात की सूचना जब बालाजी को मिली तो वे बड़े कुपित हुए इसलिए नही कि उनकी आज्ञा का उल्लंघन हुआ वरन इसलिए कि एक गरीब आदमी का अहित किया गया । अत: उन्होंने मल्हारराव की सारी संपति जब्त करके और किसान को उसकी फसल तथा मार-पीट का पूरा हर्जाना दे देने का निर्णय दे दिया । कृषक उनकी ईस न्यायप्रियता पर बड़ा प्रसन्न हुआ और मल्हारराव कि बुद्धि भी ठिकाने आ गई, दण्डस्वरुप उसका ओहदा भी घटा दिया गया ।
पेशवा बालाजी विश्वनाथ गरीबों ओर दुर्बलों के संरक्षक थे । इतिहास पुरुष बाजीराव इन्ही के पुत्र थे ।
No comments:
Post a Comment