पाइथागोरस का जीवन भर यही प्रयास रहा कि चित से अज्ञान हटे और शरीर से रोग मिटे । उनका कहना था कि सत्य , प्रेम और करुणा के पथ पर चलने से अज्ञान हट जाता है तथा सरल और प्रमाणिक जीवन जीने एवं प्राणी मात्र की सेवा करने से शरीर के रोग मिट जाते हैं ।
पाइथागोरस गणित , विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय करते थे ।
उनकी करुणा केवल मानव तक सीमित नहीं थी बल्कि प्राणिमात्र के लिए उनका ह्रदय करुणा बरसाता था । वे कहते थे पशु - पक्षी मानव के छोटे भाई हैं , किसी भी प्रकार की हिंसा का वे समर्थन नहीं करते थे । कसाई की दुकान उनके लिए सर्वथा वर्जित थी । उन दिनों यूनान में
पशु -- बलि की प्रथा प्रचलित थी लेकिन पाइथागोरस की पूजा वेदी पर पशु का बलिदान करने से नहीं फल फूल अर्पित करने से होती थी ।
उन दिनों यूनान में गुलाम रखने की प्रथा थी , पाइथागोरस धनी परिवार के थे किन्तु उन्होंने धनी परिवार से विरासत में मिले सभी गुलामों को मुक्त कर दिया ।
उनका कहना था ----- मनुष्य को हमेशा भलाई करने की आदत डालनी चाहिए | इससे आत्म विकास के द्वारा आप उस मार्ग पर पहुंचेंगे जो आपको मानवीय कमजोरियों से दूर ले जायेगा ।
सच्चा आनंद औरों की सेवा करने में तथा उनके जीवन में सुख लाने में है ।
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