' किस प्रकार एक युवक जाति व धर्म की संकीर्णताओं से ऊपर उठकर देश के लिए बलिदान हो सकता है , ऐसा एक अकेला उदाहरण है भारतीय क्रांतिकारियों में ' अशफाक उल्ला ' का ।
मातृभूमि के प्रति निष्ठा और भक्ति का जो चरमोत्कर्ष उनके व्यक्तित्व और कृतित्व में देखने को मिलता है वह अनुकरणीय है , वन्दनीय है । उनकी कविता की कुछ पंक्तियाँ हैं -------
हे मातृभूमि तेरी सेवा किया करूँगा
फाँसी मिले मुझे या हो जन्म कैद मेरी
वीणा बजा - बजा कर तेरा भजन करूँगा ।
अशफाक को अपनी उस मातृभूमि से बेइन्तिहाँ मुहब्बत थी जिसके हवा , पानी और मिट्टी से उनकी बलिष्ठ और सुद्रढ़ काया और फौलादी मन का निर्माण हुआ था । भारतीय क्रांतिकारियों में अशफाक न होते तो आने वाली पीढियां एक बहुत बड़ी प्रेरणा से वंचित रह जातीं ।
पं. रामप्रसाद बिस्मिल जब क्रांतिकारी आन्दोलन को गतिशील बनाने और युवकों में देशभक्ति की भावना जगाने के उद्देश्य से शाहजहांपुर आये , वहीँ उनकी भेंट अशफाक उल्ला से हुई । उन्होंने अपने आचरण और व्यवहार द्वारा यह प्रमाणित कर दिया कि मजहब आदमी - आदमी के बीच दीवार नहीं बन सकता ।
रामप्रसाद बिस्मिल कट्टर आर्य समाजी थे और अशफाक उल्ला कट्टर मुसलमान । उनका यह असंभव दिखने वाला मेल संभव हुआ ।' बिस्मिल ' उनसे अपने छोटे भाई की तरह स्नेह रखने लगे और वे भी उनसे मिलने बिना संकोच आर्य समाज मंदिर जाया करते थे । इनके लिए हिन्दू और मुसलमान होने का अर्थ मात्र उपासना की विधियों में थोड़ा अंतर मात्र था ।
अशफाक ने संयम सदाचार और उचित आहार - विहार द्वारा शरीर साधना भी की थी तो शुभ विचारों से अपने मन और आत्मा को भी परिपुष्ट किया था । काकोरी काण्ड में उन्हें फाँसी की सजा मिली थी । वे जेल में नियमित कुरान का पाठ करते , नमाज पढ़ते , रोजे रखते । धर्म निष्ठा और देश प्रेम उनकी आत्म - शक्ति के अजस्त्र स्रोत थे । देश भक्ति और ईश्वर विश्वास के सहारे आदमी कितना अभय प्राप्त कर सकता है , यह अशफाक की शहादत में स्पष्ट देखा जा सकता है जिंदगी जिन्दादिली का नाम है । जो अशफाक की तरह जिंदगी का अर्थ समझ लेते हैं उन्हें व्यक्तिगत शौक - मौज और खाने पहनने की छोटी - छोटी एषणायें बांधे नहीं रख सकतीं । वे समय की पुकार पर तन - मन - धन न्योछावर कर देते हैं ।
मातृभूमि के प्रति निष्ठा और भक्ति का जो चरमोत्कर्ष उनके व्यक्तित्व और कृतित्व में देखने को मिलता है वह अनुकरणीय है , वन्दनीय है । उनकी कविता की कुछ पंक्तियाँ हैं -------
हे मातृभूमि तेरी सेवा किया करूँगा
फाँसी मिले मुझे या हो जन्म कैद मेरी
वीणा बजा - बजा कर तेरा भजन करूँगा ।
अशफाक को अपनी उस मातृभूमि से बेइन्तिहाँ मुहब्बत थी जिसके हवा , पानी और मिट्टी से उनकी बलिष्ठ और सुद्रढ़ काया और फौलादी मन का निर्माण हुआ था । भारतीय क्रांतिकारियों में अशफाक न होते तो आने वाली पीढियां एक बहुत बड़ी प्रेरणा से वंचित रह जातीं ।
पं. रामप्रसाद बिस्मिल जब क्रांतिकारी आन्दोलन को गतिशील बनाने और युवकों में देशभक्ति की भावना जगाने के उद्देश्य से शाहजहांपुर आये , वहीँ उनकी भेंट अशफाक उल्ला से हुई । उन्होंने अपने आचरण और व्यवहार द्वारा यह प्रमाणित कर दिया कि मजहब आदमी - आदमी के बीच दीवार नहीं बन सकता ।
रामप्रसाद बिस्मिल कट्टर आर्य समाजी थे और अशफाक उल्ला कट्टर मुसलमान । उनका यह असंभव दिखने वाला मेल संभव हुआ ।' बिस्मिल ' उनसे अपने छोटे भाई की तरह स्नेह रखने लगे और वे भी उनसे मिलने बिना संकोच आर्य समाज मंदिर जाया करते थे । इनके लिए हिन्दू और मुसलमान होने का अर्थ मात्र उपासना की विधियों में थोड़ा अंतर मात्र था ।
अशफाक ने संयम सदाचार और उचित आहार - विहार द्वारा शरीर साधना भी की थी तो शुभ विचारों से अपने मन और आत्मा को भी परिपुष्ट किया था । काकोरी काण्ड में उन्हें फाँसी की सजा मिली थी । वे जेल में नियमित कुरान का पाठ करते , नमाज पढ़ते , रोजे रखते । धर्म निष्ठा और देश प्रेम उनकी आत्म - शक्ति के अजस्त्र स्रोत थे । देश भक्ति और ईश्वर विश्वास के सहारे आदमी कितना अभय प्राप्त कर सकता है , यह अशफाक की शहादत में स्पष्ट देखा जा सकता है जिंदगी जिन्दादिली का नाम है । जो अशफाक की तरह जिंदगी का अर्थ समझ लेते हैं उन्हें व्यक्तिगत शौक - मौज और खाने पहनने की छोटी - छोटी एषणायें बांधे नहीं रख सकतीं । वे समय की पुकार पर तन - मन - धन न्योछावर कर देते हैं ।
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