' संसार के मनुष्य किसी सफल मनोरथ और सौभाग्यशाली व्यक्ति के बाहरी रूप को देखकर यह अभिलाषा तो करते हैं कि हम भी ऐसे ही बन जाएँ , पर इस बात पर बहुत कम ध्यान देते हैं कि इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए उन्होंने त्याग , तपस्या , कष्ट सहन , एकांतवास आदि का जीवन व्यतीत करके अपने आचरण को सुद्रढ़ बनाया | '
इस तथ्य को समझाने के लिए एक लेखक ने लिखा है ----- " देश के युवा और वृद्ध पुरुषों से में यही कहूँगा कि यदि आप भी केशवचंद्र सेन की भांति सुख - शान्ति प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको उनकी तरह सदाचारी भी बनना पड़ेगा । विनय और प्रसन्नता सदाचारियों को ही प्राप्त होती है । जो आदमी सर्वदा अपने अंत:करण की रक्षा करता है , परमात्मा उसी की सहायता करता है ।"
श्री केशवचंद्र सेन ( जन्म 19 नवम्बर 1838 ) के बाल्य - मित्र और बंगाल के प्रसिद्ध नेता श्री प्रतापचन्द्र मजूमदार ने उनका चरित्र - चित्रण करते हुए लिखा है --- " उन दिनों बंगाली लड़कों का जीवन प्राय: दुराचार से परिपूर्ण था । पर केशव बाबू इससे बिलकुल बचे हुए थे । बुरे लड़कों की संगत को वे घ्रणा की द्रष्टि से देखते थे । "
वे ब्रह्मचर्यं के आदर्श पर विश्वास रखते थे कि शास्त्रीय आदेशानुसार यदि 24 वर्ष की आयु तक ब्रह्मचर्यं का पालन किया जाये तो उससे जीवन के विकास और विद्दा - बुद्धि की उन्नति में महत्वपूर्ण लाभ मिलेगा |
उस समय की परम्परा के अनुसार 18 वर्ष की आयु में इनका विवाह एक 10 वर्ष की लड़की के साथ कर दिया गया । इससे उन्हें बड़ा क्षोभ हुआ ।
उस समय पूर्ण युवावस्था होने पर भी उन्होंने विवाह के बाद कई वर्षों तक ब्रह्मचर्यं का कठोर तपस्वी जीवन व्यतीत किया | इन दिनों वे गंभीर रहते थे , उन्होंने कुछ धार्मिक प्रार्थना बना ली थीं , जिन्हें वे प्रात: व सांयकाल किया करते थे । वे स्वयं और उनके मित्र आस -पास के लड़कों को नि:शुल्क दिया करते थे , जिसमे नैतिक शिक्षा प्रमुख थी , भाषणों व नाटकों से वे समाज - सुधार व आध्यात्मिकता का प्रचार करते थे |
एक लेखक ने लिखा है ----- " इस समय 40 वर्ष की आयु में वे बहुत स्वस्थ हैं , उनके कई बच्चे हैं । उनका चेहरा इतना प्रसन्नतापूर्ण है कि मुस्कराहट और तेज उनके चारों ओर छाया रहता है | उन्होंने अपने जीवन को इतना सफलतापूर्ण बनाया है कि प्रत्येक आदमी उनकी आज्ञा को मानता हुआ दीख पड़ता है । उनकी शान्ति , स्वास्थ्य और कलह के अभाव को देखकर यही प्रतीत होता है कि ये बातें उन्हें परमात्मा से प्राप्त हुई हैं । "
इस तथ्य को समझाने के लिए एक लेखक ने लिखा है ----- " देश के युवा और वृद्ध पुरुषों से में यही कहूँगा कि यदि आप भी केशवचंद्र सेन की भांति सुख - शान्ति प्राप्त करना चाहते हैं तो आपको उनकी तरह सदाचारी भी बनना पड़ेगा । विनय और प्रसन्नता सदाचारियों को ही प्राप्त होती है । जो आदमी सर्वदा अपने अंत:करण की रक्षा करता है , परमात्मा उसी की सहायता करता है ।"
श्री केशवचंद्र सेन ( जन्म 19 नवम्बर 1838 ) के बाल्य - मित्र और बंगाल के प्रसिद्ध नेता श्री प्रतापचन्द्र मजूमदार ने उनका चरित्र - चित्रण करते हुए लिखा है --- " उन दिनों बंगाली लड़कों का जीवन प्राय: दुराचार से परिपूर्ण था । पर केशव बाबू इससे बिलकुल बचे हुए थे । बुरे लड़कों की संगत को वे घ्रणा की द्रष्टि से देखते थे । "
वे ब्रह्मचर्यं के आदर्श पर विश्वास रखते थे कि शास्त्रीय आदेशानुसार यदि 24 वर्ष की आयु तक ब्रह्मचर्यं का पालन किया जाये तो उससे जीवन के विकास और विद्दा - बुद्धि की उन्नति में महत्वपूर्ण लाभ मिलेगा |
उस समय की परम्परा के अनुसार 18 वर्ष की आयु में इनका विवाह एक 10 वर्ष की लड़की के साथ कर दिया गया । इससे उन्हें बड़ा क्षोभ हुआ ।
उस समय पूर्ण युवावस्था होने पर भी उन्होंने विवाह के बाद कई वर्षों तक ब्रह्मचर्यं का कठोर तपस्वी जीवन व्यतीत किया | इन दिनों वे गंभीर रहते थे , उन्होंने कुछ धार्मिक प्रार्थना बना ली थीं , जिन्हें वे प्रात: व सांयकाल किया करते थे । वे स्वयं और उनके मित्र आस -पास के लड़कों को नि:शुल्क दिया करते थे , जिसमे नैतिक शिक्षा प्रमुख थी , भाषणों व नाटकों से वे समाज - सुधार व आध्यात्मिकता का प्रचार करते थे |
एक लेखक ने लिखा है ----- " इस समय 40 वर्ष की आयु में वे बहुत स्वस्थ हैं , उनके कई बच्चे हैं । उनका चेहरा इतना प्रसन्नतापूर्ण है कि मुस्कराहट और तेज उनके चारों ओर छाया रहता है | उन्होंने अपने जीवन को इतना सफलतापूर्ण बनाया है कि प्रत्येक आदमी उनकी आज्ञा को मानता हुआ दीख पड़ता है । उनकी शान्ति , स्वास्थ्य और कलह के अभाव को देखकर यही प्रतीत होता है कि ये बातें उन्हें परमात्मा से प्राप्त हुई हैं । "
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