दादाभाई का जन्म 4 सितम्बर 1825 को एक निर्धन परिवार में हुआ था । बड़े परिश्रम और कठिनाई से उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी । उनका कहना था कि जिस राष्ट्र और समाज ने हमें जन्म और जीवन दिया है , उस पर हमारा अधिकार न होकर समाज और देश का ही अधिकार है । मेरा तन , मन , धन जो कुछ भी मेरे पास है उस सबका उपयोग जन हित में करना ही मेरा कर्तव्य है ।
यह एक ज्वलंत सत्य है कि दादाभाई ने अपने लिए न तो कभी कुछ चाहा और न कभी कुछ किया , उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ भी किया वह सब जनता और देश की भलाई के लिए किया । उनकी इस उन्नत और उदात्त परमार्थ भावना ने , उन्हें जिस प्रतिष्ठा पर पहुँचा दिया उसे जानकर विश्वास करना पड़ता है कि निष्काम कर्म , योग्य कर्तव्य और निर्लोभ सेवाओं का परिपाक उच्चतम स्वर्गीय सफलताओं के रूप में ही होता है ।
उन्हें प्रथम भारतीय प्राध्यापक होने का गौरव प्राप्त हुआ ।
वे ही प्रथम भारतीय हैं , जिन्हें सर्वप्रथम भारतीय जनता के सामाजिक , बौद्धिक और राजनीतिक विकास के लिए अनेक संस्थाएं स्थापित करने का श्रेय प्राप्त हुआ ।
वे ही सर्वप्रथम भारतीय हैं जिन्हें ब्रिटिश संसद का सदस्य होने का सम्मान प्राप्त हुआ ।
वे उस शाही कमीशन के भारतीय सदस्य नियुक्त हुए जिसे भारत को आर्थिक न्याय दिलाने के मंतव्य ने गठ्त्त किया गया था ।
वे ही सबसे पहले भारतीय हैं , जो भारत के लिए स्वशासन की मांग कर भारतीय स्वाधीनता के पितामह कहकर प्रतिष्ठित किये गये ।
यह एक ज्वलंत सत्य है कि दादाभाई ने अपने लिए न तो कभी कुछ चाहा और न कभी कुछ किया , उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ भी किया वह सब जनता और देश की भलाई के लिए किया । उनकी इस उन्नत और उदात्त परमार्थ भावना ने , उन्हें जिस प्रतिष्ठा पर पहुँचा दिया उसे जानकर विश्वास करना पड़ता है कि निष्काम कर्म , योग्य कर्तव्य और निर्लोभ सेवाओं का परिपाक उच्चतम स्वर्गीय सफलताओं के रूप में ही होता है ।
उन्हें प्रथम भारतीय प्राध्यापक होने का गौरव प्राप्त हुआ ।
वे ही प्रथम भारतीय हैं , जिन्हें सर्वप्रथम भारतीय जनता के सामाजिक , बौद्धिक और राजनीतिक विकास के लिए अनेक संस्थाएं स्थापित करने का श्रेय प्राप्त हुआ ।
वे ही सर्वप्रथम भारतीय हैं जिन्हें ब्रिटिश संसद का सदस्य होने का सम्मान प्राप्त हुआ ।
वे उस शाही कमीशन के भारतीय सदस्य नियुक्त हुए जिसे भारत को आर्थिक न्याय दिलाने के मंतव्य ने गठ्त्त किया गया था ।
वे ही सबसे पहले भारतीय हैं , जो भारत के लिए स्वशासन की मांग कर भारतीय स्वाधीनता के पितामह कहकर प्रतिष्ठित किये गये ।
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