स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने मनुष्य सेवा के रूप परमात्मा की सेवा स्वीकार की , इससे उन्होंने अपने में स्थाई सुख - शान्ति तथा संतोष का अनुभव किया | रोगियों की सेवा , अपंगों की सेवा और निर्धनों की सहायता करना उनका विशेष कार्यक्रम बन गया | जहाँ भी वे किसी रोगी को कराहते हुए देखते अपने हाथों से उसकी परिचर्या करते । अपंगों और विकलांगों के पास जाकर उनकी सहायता करते । साधारण रोगियों से लेकर क्षय एवं कुष्ठरोगियों तक की सेवा करने में उन्हें कोई संकोच नहीं होता था । दीन - दुःखियों को ह्रदय से लगाने में उन्हें एक स्वर्गीय सुख , शान्ति का अनुभव होता था |
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