स्वामी विवेकानन्द बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ था । मैट्रिक पास कर उन्होंने जिस समय कॉलेज में प्रवेश लिया उस समय उनके ह्रदय ने पुलकित होकर कहा ---- " यदि मैं अपने परिश्रम के बल पर ईश्वरीय कृपा से ज्ञान की प्राप्ति कर सका तो संसार का अंधकार दूर करने में जीवन का एक - एक क्षण लगा दूंगा । " इस शिव संकल्प की अनुभूति ने नरेन्द्रनाथ के ह्रदय में एक ऐसे उत्तरदायित्व का जागरण कर दिया जिससे उनका मानसिक स्तर सामान्य से उठकर असामान्य स्थिति की ओर बढ़ गया |
उन्होंने मन ही मन परमात्मा को धन्यवाद दिया और स्वयं से कहा --- नरेंद्र ! लोकसेवा की मंगल कामना में इतना सुख है तब न जाने उसका प्रतिपादन करने में कितना सुख और संतोष होगा । कर्तव्य ध्वनित हो चुका है उसका पालन करना और मानव जीवन की धन्यता प्राप्त करना अब तेरे हाथ में है ।
उनकी आत्मा लोक - कल्याण की भावना से तड़प उठी और भविष्य उनको स्वामी विवेकानन्द के रूप में पूजने की प्रतीक्षा कर रहा था ।
लोककल्याण के लिए नरेन्द्रनाथ ने जिस ज्ञान की आवश्यकता समझी उसे प्राप्त करने के लिए उन्होंने पाश्चात्य दर्शन के साथ भारतीय दर्शन का अध्ययन किया फिर उन्होंने यह जान लिया कि भारतीय तत्वज्ञान संसार में शाश्वत और श्रेष्ठ है । और तब उन्होंने यह निश्चय कर लिया कि संसार को भारतीय तत्वज्ञान से अवगत कराएँगे ।
स्वामी विवेकानंद का जीवन हमें यह सिखाता है कि----- विश्व कल्याण के शिव संकल्प के साथ जीवन में जाग उठने वालों को ऐसे कौन से श्रेय हैं जो पूर्ण रूप से न मिल जाते हों ।
स्वामी विवेकानंद ने स्थानीय पूजा की मोहमयी मान्यता को ठोकर मारकर लोककल्याण का , परमार्थ का मार्ग चुना । उन्होंने दीन - दुःखियों , अनाथों तथा विधवाओं की सेवा करने के लिए अनेक मठ स्थापित किये , जिनमे वे आश्रयहीनो को आश्रय और शिष्यों को लोकसेवा का शिक्षण व प्रशिक्षण करते थे ।
उन्होंने मन ही मन परमात्मा को धन्यवाद दिया और स्वयं से कहा --- नरेंद्र ! लोकसेवा की मंगल कामना में इतना सुख है तब न जाने उसका प्रतिपादन करने में कितना सुख और संतोष होगा । कर्तव्य ध्वनित हो चुका है उसका पालन करना और मानव जीवन की धन्यता प्राप्त करना अब तेरे हाथ में है ।
उनकी आत्मा लोक - कल्याण की भावना से तड़प उठी और भविष्य उनको स्वामी विवेकानन्द के रूप में पूजने की प्रतीक्षा कर रहा था ।
लोककल्याण के लिए नरेन्द्रनाथ ने जिस ज्ञान की आवश्यकता समझी उसे प्राप्त करने के लिए उन्होंने पाश्चात्य दर्शन के साथ भारतीय दर्शन का अध्ययन किया फिर उन्होंने यह जान लिया कि भारतीय तत्वज्ञान संसार में शाश्वत और श्रेष्ठ है । और तब उन्होंने यह निश्चय कर लिया कि संसार को भारतीय तत्वज्ञान से अवगत कराएँगे ।
स्वामी विवेकानंद का जीवन हमें यह सिखाता है कि----- विश्व कल्याण के शिव संकल्प के साथ जीवन में जाग उठने वालों को ऐसे कौन से श्रेय हैं जो पूर्ण रूप से न मिल जाते हों ।
स्वामी विवेकानंद ने स्थानीय पूजा की मोहमयी मान्यता को ठोकर मारकर लोककल्याण का , परमार्थ का मार्ग चुना । उन्होंने दीन - दुःखियों , अनाथों तथा विधवाओं की सेवा करने के लिए अनेक मठ स्थापित किये , जिनमे वे आश्रयहीनो को आश्रय और शिष्यों को लोकसेवा का शिक्षण व प्रशिक्षण करते थे ।
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