' कविताएँ तो कई लिखी जाती हैं । समाज के , व्यक्ति के मर्म और ह्रदय को जो स्पर्श कर ले , प्रभावित कर दे , उसी रचना को युग - साहित्य की संज्ञा मिलती है । ' समाज में व्याप्त कुरीतियों , ब्राह्मण - पंडितों , बाल - विवाह , वृद्ध - विवाह जैसे विषय पर उनकी चुनी हुई कविताओं का संकलन 1901 में प्रकाशित हुआ । ' काव्योपवन ' नामक इस अकेले संकलन ने उन्हें महाकवि के पद पर प्रतिष्ठित कर दिया ।
1914 में उनकी सर्वोत्कृष्ट कृति ' प्रिय प्रवास ' प्रकाशित हुई | हिन्दी साहित्य में इसकी प्रतिष्ठा भागवत के समकक्ष की गई है । सभी समस्याओं , कष्ट - कठिनाइयों का एक अचूक - निदान भगवद-प्रेम बताकर उन्होंने सर्व साधारण के सामने एक अपूर्व सुझाव रखा था | उनका भगवत्प्रेम निराशा , पलायन और अवसाद का नहीं आशा , उत्साह तथा प्राण स्फूर्ति का सन्देश देता है । इस ग्रन्थ के नायक श्री कृष्ण है । ब्रज को छोड़कर कंस के बुलावे पर मथुरा जाना --- इस प्रसंग को उन्होंने कर्तव्य - निष्ठा का रंग देकर उल्लिखित किया है ।
1914 में उनकी सर्वोत्कृष्ट कृति ' प्रिय प्रवास ' प्रकाशित हुई | हिन्दी साहित्य में इसकी प्रतिष्ठा भागवत के समकक्ष की गई है । सभी समस्याओं , कष्ट - कठिनाइयों का एक अचूक - निदान भगवद-प्रेम बताकर उन्होंने सर्व साधारण के सामने एक अपूर्व सुझाव रखा था | उनका भगवत्प्रेम निराशा , पलायन और अवसाद का नहीं आशा , उत्साह तथा प्राण स्फूर्ति का सन्देश देता है । इस ग्रन्थ के नायक श्री कृष्ण है । ब्रज को छोड़कर कंस के बुलावे पर मथुरा जाना --- इस प्रसंग को उन्होंने कर्तव्य - निष्ठा का रंग देकर उल्लिखित किया है ।
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