महाभारत का युद्ध लगभग समाप्ति की ओर था | दुर्योधन अपनी माता गांधारी की पतिव्रत जन्म सिद्धि को जानता था , इसलिए वह अपनी माँ के पास गया और उनसे अपनी विजय का उपाय जानने का बहुत आग्रह किया । इस पर गांधारी ने उसे युधिष्ठिर के पास जाकर उपाय पूछने के लिए कहा ।
दुर्योधन ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा ---- ' वे तो हमारे शत्रु हैं । भला हमारी विजय का उपाय कैसे बतायेंगे ? ' गांधारी ने कहा ---- " श्रेष्ठ पुरुष अपने - पराये का और मित्र - शत्रु का भेद नहीं करते । वे बिना भेदभाव सबको सत्परामर्श देते हैं । तुम उनके पास जाओ , उचित परामर्श मिलेगा । "
दुर्योधन गया और पूछा । उत्तर में युधिष्ठिर ने बताया --- यदि आपकी माता खुले नेत्रों से आपका शरीर देख ले तो वह वज्र का हो जायेगा और उस पर किसी शस्त्र का आघात नहीं होगा । '
दुर्योधन ने वैसा ही किया , किन्तु संकोचवश वह कमर पर वस्त्र पहने रहा , इस कारण उसका वह अंग दुर्बल रह गया और भावीवश उसी पर प्रहार से मारा गया । पर युधिष्ठिर का अपने शत्रु को भी सत्परामर्श देना सदा अमर रहेगा ।
दुर्योधन ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा ---- ' वे तो हमारे शत्रु हैं । भला हमारी विजय का उपाय कैसे बतायेंगे ? ' गांधारी ने कहा ---- " श्रेष्ठ पुरुष अपने - पराये का और मित्र - शत्रु का भेद नहीं करते । वे बिना भेदभाव सबको सत्परामर्श देते हैं । तुम उनके पास जाओ , उचित परामर्श मिलेगा । "
दुर्योधन गया और पूछा । उत्तर में युधिष्ठिर ने बताया --- यदि आपकी माता खुले नेत्रों से आपका शरीर देख ले तो वह वज्र का हो जायेगा और उस पर किसी शस्त्र का आघात नहीं होगा । '
दुर्योधन ने वैसा ही किया , किन्तु संकोचवश वह कमर पर वस्त्र पहने रहा , इस कारण उसका वह अंग दुर्बल रह गया और भावीवश उसी पर प्रहार से मारा गया । पर युधिष्ठिर का अपने शत्रु को भी सत्परामर्श देना सदा अमर रहेगा ।
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