' वे उन थोड़े से भारतवासियों में से थे जो उस अंग्रेज - प्रधान युग में भी अपने जातीय गौरव की रक्षा के लिए तत्पर रहते थे । वे उन कर्तव्य परायण लोगों में से थे जो अपने वास्तविक उत्तरदायित्व का निर्वाह करने के लिए न पदवी की परवाह करते हैं , न धन की और न सुख - दुःख की । '
उत्तर प्रदेश के अंग्रेज गवर्नर लखनऊ से इलाहाबाद गवर्नमेंट हाउस में कुछ दिन तक निवास करने वाले थे । यह कोठी ख़ाली रहती थी , जब गवर्नर एक -दो महीने के लिए आकर उसमे रहते थे तब उसकी सफाई होती थी और उसमे एक तालाब था जिसे नल के पानी से भर दिया जाता था । गवर्नमेंट हाउस में आने पर जब गवर्नर ने देखा तालाब सूखा पड़ा है तो उन्हें बहुत क्रोध आया । उन्होंने अपने प्राइवेट सेक्रेटरी को म्युनिस्पैलिटी के चेयरमैन के पास जवाब तलब के लिए भेजा कि यह गलती क्यों हुई और अब तालाब तुरंत भरा जाये ।
चेयरमैन टंडन जी थे । उस वर्ष वर्षा कम होने से पानी की कमी थी , ऐसे समय एक व्यक्ति के मनोविनोद के लिए हजारों मन पेय जल को तालाब को भरने में बर्बाद करना नैतिकता की द्रष्टि से अक्षम्य अपराध था । प्राइवेट सेक्रेटरी ने अपना अंग्रेजी रौब दिखाकर काम निकालना चाहा किन्तु टंडन जी के आगे उसकी एक न चली । उन्होंने कह दिया कि--'नगर की जनता को प्यासा मारकर गवर्नर साहब के स्नान के लिए नल के पानी से तालाब नहीं भरा जा सकता । '
यह टंडन जी का आत्मबल ही था कि उस युग में समस्त प्रान्त के कर्ता - धर्ता गवर्नर के आराम की उपेक्षा करके उन्होंने गरीब जनता के कष्टों और अभावों का ख्याल रखा ।
उत्तर प्रदेश के अंग्रेज गवर्नर लखनऊ से इलाहाबाद गवर्नमेंट हाउस में कुछ दिन तक निवास करने वाले थे । यह कोठी ख़ाली रहती थी , जब गवर्नर एक -दो महीने के लिए आकर उसमे रहते थे तब उसकी सफाई होती थी और उसमे एक तालाब था जिसे नल के पानी से भर दिया जाता था । गवर्नमेंट हाउस में आने पर जब गवर्नर ने देखा तालाब सूखा पड़ा है तो उन्हें बहुत क्रोध आया । उन्होंने अपने प्राइवेट सेक्रेटरी को म्युनिस्पैलिटी के चेयरमैन के पास जवाब तलब के लिए भेजा कि यह गलती क्यों हुई और अब तालाब तुरंत भरा जाये ।
चेयरमैन टंडन जी थे । उस वर्ष वर्षा कम होने से पानी की कमी थी , ऐसे समय एक व्यक्ति के मनोविनोद के लिए हजारों मन पेय जल को तालाब को भरने में बर्बाद करना नैतिकता की द्रष्टि से अक्षम्य अपराध था । प्राइवेट सेक्रेटरी ने अपना अंग्रेजी रौब दिखाकर काम निकालना चाहा किन्तु टंडन जी के आगे उसकी एक न चली । उन्होंने कह दिया कि--'नगर की जनता को प्यासा मारकर गवर्नर साहब के स्नान के लिए नल के पानी से तालाब नहीं भरा जा सकता । '
यह टंडन जी का आत्मबल ही था कि उस युग में समस्त प्रान्त के कर्ता - धर्ता गवर्नर के आराम की उपेक्षा करके उन्होंने गरीब जनता के कष्टों और अभावों का ख्याल रखा ।
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