रूमानिया में 1909 में एक बालक का जन्म हुआ , नाम रखा ---- ऐमालय चजाया । यह बहुत ही दुबला -पतला , दब्बू प्रकृति का था , अपने साथियों से रोज पिट कर घर आता था , उसे यह पिटना असह्य था , पर विवश था । एक दिन उसे बुरी तरह मार पड़ी , वह रोता -रोता घर आ रहा था । रस्ते में एक व्यक्ति ने उससे रोने का कारण पूछा तो उसने कहा --" मैं दुबला हूँ , इसलिए सब लड़के मुझे मारते हैं । " उस व्यक्ति ने उसे स्नेह से समझाया कि व्यायाम कर के शरीर का और बल का विकास करो ।
उसी दिन से बालक ने नियमित व्यायाम आरम्भ किया , विश्व विख्यात पहलवान बना और किंग कांग के नाम से अभूतपूर्व ख्याति अर्जित की । साधारण दुबले - पतले सींकिया पहलवान से विकसित होकर इतना विशाल शरीर बनाने के लिए उसने आजीवन अविवाहित रहने के संकल्प को निभाया ।
कुश्ती में खिलाड़ी की भावना से लड़ने वालों में किंग कांग को सदा याद किया जायेगा ।
विश्व विजेता होते हुए भी उसे अपनी शारीरिक शक्ति पर गर्व नहीं था , और न अपने विश्व विजेता सम्मान को बनाये रखने की चिंता । वह कहता था --- ' जिस काम को करो उसी में लीन हो जाओ यही है सफलता का राज । '
किंग कांग ने अपनी इस शक्ति का सदुपयोग दुर्बलों को अपनी तरह बलवान बनाने में किया , उसने कई व्यायाम शालाएं संचालित कीं ।
'कमजोर और पिछड़ा मनुष्य आज जीवन के हर क्षेत्र में ऐमायल चजाया की तरह मार खा रहा है । अपनी आंतरिक शक्तियों को जगाकर उसे किंग कांग बनना है । भावना शील व्यक्ति पीड़ित मनुष्य के लिए करना तो बहुत कुछ चाहते हैं पर उन्हें अपनी क्षमताओं पर विश्वास नहीं होता है । किंग कांग की तरह इन शक्तियों को विकसित किया जाये तो ऐसे ही आश्चर्य जनक परिणाम जन कल्याण की दिशा में प्रस्तुत किये जा सकते हैं । '
उसी दिन से बालक ने नियमित व्यायाम आरम्भ किया , विश्व विख्यात पहलवान बना और किंग कांग के नाम से अभूतपूर्व ख्याति अर्जित की । साधारण दुबले - पतले सींकिया पहलवान से विकसित होकर इतना विशाल शरीर बनाने के लिए उसने आजीवन अविवाहित रहने के संकल्प को निभाया ।
कुश्ती में खिलाड़ी की भावना से लड़ने वालों में किंग कांग को सदा याद किया जायेगा ।
विश्व विजेता होते हुए भी उसे अपनी शारीरिक शक्ति पर गर्व नहीं था , और न अपने विश्व विजेता सम्मान को बनाये रखने की चिंता । वह कहता था --- ' जिस काम को करो उसी में लीन हो जाओ यही है सफलता का राज । '
किंग कांग ने अपनी इस शक्ति का सदुपयोग दुर्बलों को अपनी तरह बलवान बनाने में किया , उसने कई व्यायाम शालाएं संचालित कीं ।
'कमजोर और पिछड़ा मनुष्य आज जीवन के हर क्षेत्र में ऐमायल चजाया की तरह मार खा रहा है । अपनी आंतरिक शक्तियों को जगाकर उसे किंग कांग बनना है । भावना शील व्यक्ति पीड़ित मनुष्य के लिए करना तो बहुत कुछ चाहते हैं पर उन्हें अपनी क्षमताओं पर विश्वास नहीं होता है । किंग कांग की तरह इन शक्तियों को विकसित किया जाये तो ऐसे ही आश्चर्य जनक परिणाम जन कल्याण की दिशा में प्रस्तुत किये जा सकते हैं । '
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