' कोई भी परिवर्तन बड़ा हो या छोटा विचारों के रूप में ही जन्म लेता है । मनुष्यों और समाज की विचारणा तथा धारणा में जब तक परिवर्तन नहीं आता तब तक सामाजिक परिवर्तन भी असम्भव ही है । और विचारों के बीज साहित्य के हल से बोये जा सकते हैं । '
लू - शुन ( जन्म 1881 ) में चीन में हुआ था । उस समय वहां सामन्तों और जागीरदारों का समाज पर प्रभुत्व था । उन्होंने अपनी लेखनी द्वारा सामंती व्यवस्था पर करारे प्रहार किये । उन्होंने दोनों पक्षों का ध्यान रखा । पहला पक्ष तो था उस व्यवस्था से पीड़ित लोगों का जो इस शोषण के चक्र में बुरी तरह पिस चुके थे और पिसते जा रहे थे -- उनका करुण चित्रण था । और दूसरा पक्ष था ---- इसके विकल्प का प्रतिपादन । वर्तमान व्यवस्था को तोड़ा जाये तो इसके स्थान पर क्या किया जाये ?
उनकी कहानियों में वह बात थी जिसे पढ़कर तिलमिला उठा ह्रदय समाधान पाकर तृप्त हो जाता , मात्र तृप्त ही नहीं एक दिशा भी प्राप्त कर लेता था । इस प्रकार उन्होंने समाजवादी क्रान्ति की संभावनाओं को मजबूत बनाया ।
चीन के राष्ट्राध्यक्ष माओत्से तुंग ने कहा था वे संस्कृतिक क्रान्ति के महान सेनापति और वीर सेनानी थे ।
लू - शुन ( जन्म 1881 ) में चीन में हुआ था । उस समय वहां सामन्तों और जागीरदारों का समाज पर प्रभुत्व था । उन्होंने अपनी लेखनी द्वारा सामंती व्यवस्था पर करारे प्रहार किये । उन्होंने दोनों पक्षों का ध्यान रखा । पहला पक्ष तो था उस व्यवस्था से पीड़ित लोगों का जो इस शोषण के चक्र में बुरी तरह पिस चुके थे और पिसते जा रहे थे -- उनका करुण चित्रण था । और दूसरा पक्ष था ---- इसके विकल्प का प्रतिपादन । वर्तमान व्यवस्था को तोड़ा जाये तो इसके स्थान पर क्या किया जाये ?
उनकी कहानियों में वह बात थी जिसे पढ़कर तिलमिला उठा ह्रदय समाधान पाकर तृप्त हो जाता , मात्र तृप्त ही नहीं एक दिशा भी प्राप्त कर लेता था । इस प्रकार उन्होंने समाजवादी क्रान्ति की संभावनाओं को मजबूत बनाया ।
चीन के राष्ट्राध्यक्ष माओत्से तुंग ने कहा था वे संस्कृतिक क्रान्ति के महान सेनापति और वीर सेनानी थे ।
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