' गीता का अध्ययन उनका नित्य - कृत्य था l उनका जीवन और पूरी दिनचर्या ईश्वर के प्रति अडिग निष्ठा तथा कर्मयोग के द्वारा संचालित हुआ करती थी । आजाद हिन्द सरकार के सूचना मंत्री
एस. ए. अय्यर ने लिखा है ----- " सभी चुनौतियों का सामना करने की शक्ति उन्होंने ईश्वर में अपनी अगाध निष्ठा से प्राप्त की थी । नेताजी के आकर्षक व्यक्तित्व और शक्तिशाली नेतृत्व का यह रहस्य था । "
जब कटक में स्वामी विवेकानन्द पधारे तब सुभाषचंद्र बोस ने उनसे प्रभावित होकर सन्यास दीक्षा की प्रार्थना की परन्तु उत्तर मिला --- " संन्यास के लिए तैयारी और अभ्यास की आवश्यकता है । साधना के प्राथमिक सोपान पूरे कर लो तब तुम्हारी अंतरात्मा स्वयमेव ही तुम्हे इस जीवन में दीक्षित कर देगी । "
" इसके प्राथमिक सोपान कौन से हैं ? "
" सेवा और सेवा । इसी साधना का स्थूल अभ्यास तुम्हारी अगली सीढ़ी बन जायेगा । "
स्वामी विवेकानन्द की प्रेरणा से अब अध्ययन और पठन - पाठन के बाद सुभाष बाबू सेवा के अवसर ही तलाश करते ।
उन्ही दिनों नगर में हैजा फैला । सुभाषचंद्र बोस ने अपने साथियों को लेकर निर्धन बस्तियों को अपना कार्यक्षेत्र बनाया । जिस घर में बेटा अपनी माँ को छूने से भी परहेज करता था उस घर को सुभाष ने अपने साथियों सहित मंदिर माना और उसमे निवास कर रहे जीते - जागते देवताओं की पूजा की । जिस घर में उन्हें कोई विलाप करता दिखाई पड़ता , वे उस घर में जाते और रोगी को औषधि देने से लेकर उसका वमन साफ़ करने का दायित्व निभाते । इस रूप में लोगों ने उन्हें भगवान का दूत , भयहारी प्रभु का अवतार जाना । गीता के अध्ययन से यह तथ्य उन्होंने समझ लिया था कि परिवार में रहकर , कर्तव्यों का पालन करते हुए भी आत्मा का ज्योतिर्मय प्रकाश पाया जा सकता है । उन्हें कीर्ति की कामना नहीं थी ।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस महामानव थे । उनको उच्च विद्दा , बुद्धि , पदवी , पारिवारिक सुख , सार्वजनिक सम्मान सब कुछ प्राप्त था । अन्य अनेक माननीय और उच्च पदों पर प्रतिष्ठित व्यक्तियों के समान सुख - सुविधा का सार्वजनिक जीवन बिता सकना उनके लिए कुछ भी कठिन न था , पर इन सबका त्याग कर उन्होंने स्वेच्छा से ऐसा जीवन मार्ग ग्रहण किया जिसमे पग - पग पर काँटे थे । उनका त्याग और साहस इतना उच्च कोटि का था कि इसे देखकर हजारों व्यक्ति उनके सामने ही
अपने देशवासियों को मनुष्योचित अधिकार दिलाने के लिए तन , मन , धन सर्वस्व अर्पण करने को तैयार हो जाते । उनके प्रेरणादायक उद्गार हैं ----- " तुम फिर से मनुष्य बनो । अपने आपको पहचान कर अपने कर्तव्य का पालन करो l तुमको जो शक्ति प्राप्त हुई है उसको और विकसित करो । अपने ह्रदय को नवीन उत्साह से भरो । यौवन के आनन्द और शक्ति को अपनी एक - एक नस में संचारित करो । इससे तुम्हारा आंतरिक जीवन सूर्य की किरणों से प्रकाशित मार्ग के समान सुस्पष्ट और विकसित बन जायेगा । तुम जीवन की पूर्णता अनुभव करके धन्य बनो , यही मेरी विनीत आकांक्षा और प्रार्थना है । "
एस. ए. अय्यर ने लिखा है ----- " सभी चुनौतियों का सामना करने की शक्ति उन्होंने ईश्वर में अपनी अगाध निष्ठा से प्राप्त की थी । नेताजी के आकर्षक व्यक्तित्व और शक्तिशाली नेतृत्व का यह रहस्य था । "
जब कटक में स्वामी विवेकानन्द पधारे तब सुभाषचंद्र बोस ने उनसे प्रभावित होकर सन्यास दीक्षा की प्रार्थना की परन्तु उत्तर मिला --- " संन्यास के लिए तैयारी और अभ्यास की आवश्यकता है । साधना के प्राथमिक सोपान पूरे कर लो तब तुम्हारी अंतरात्मा स्वयमेव ही तुम्हे इस जीवन में दीक्षित कर देगी । "
" इसके प्राथमिक सोपान कौन से हैं ? "
" सेवा और सेवा । इसी साधना का स्थूल अभ्यास तुम्हारी अगली सीढ़ी बन जायेगा । "
स्वामी विवेकानन्द की प्रेरणा से अब अध्ययन और पठन - पाठन के बाद सुभाष बाबू सेवा के अवसर ही तलाश करते ।
उन्ही दिनों नगर में हैजा फैला । सुभाषचंद्र बोस ने अपने साथियों को लेकर निर्धन बस्तियों को अपना कार्यक्षेत्र बनाया । जिस घर में बेटा अपनी माँ को छूने से भी परहेज करता था उस घर को सुभाष ने अपने साथियों सहित मंदिर माना और उसमे निवास कर रहे जीते - जागते देवताओं की पूजा की । जिस घर में उन्हें कोई विलाप करता दिखाई पड़ता , वे उस घर में जाते और रोगी को औषधि देने से लेकर उसका वमन साफ़ करने का दायित्व निभाते । इस रूप में लोगों ने उन्हें भगवान का दूत , भयहारी प्रभु का अवतार जाना । गीता के अध्ययन से यह तथ्य उन्होंने समझ लिया था कि परिवार में रहकर , कर्तव्यों का पालन करते हुए भी आत्मा का ज्योतिर्मय प्रकाश पाया जा सकता है । उन्हें कीर्ति की कामना नहीं थी ।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस महामानव थे । उनको उच्च विद्दा , बुद्धि , पदवी , पारिवारिक सुख , सार्वजनिक सम्मान सब कुछ प्राप्त था । अन्य अनेक माननीय और उच्च पदों पर प्रतिष्ठित व्यक्तियों के समान सुख - सुविधा का सार्वजनिक जीवन बिता सकना उनके लिए कुछ भी कठिन न था , पर इन सबका त्याग कर उन्होंने स्वेच्छा से ऐसा जीवन मार्ग ग्रहण किया जिसमे पग - पग पर काँटे थे । उनका त्याग और साहस इतना उच्च कोटि का था कि इसे देखकर हजारों व्यक्ति उनके सामने ही
अपने देशवासियों को मनुष्योचित अधिकार दिलाने के लिए तन , मन , धन सर्वस्व अर्पण करने को तैयार हो जाते । उनके प्रेरणादायक उद्गार हैं ----- " तुम फिर से मनुष्य बनो । अपने आपको पहचान कर अपने कर्तव्य का पालन करो l तुमको जो शक्ति प्राप्त हुई है उसको और विकसित करो । अपने ह्रदय को नवीन उत्साह से भरो । यौवन के आनन्द और शक्ति को अपनी एक - एक नस में संचारित करो । इससे तुम्हारा आंतरिक जीवन सूर्य की किरणों से प्रकाशित मार्ग के समान सुस्पष्ट और विकसित बन जायेगा । तुम जीवन की पूर्णता अनुभव करके धन्य बनो , यही मेरी विनीत आकांक्षा और प्रार्थना है । "
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