' जो धर्म लोगों में भेदभाव की दीवारों को ऊँचा करता है उसे श्रेष्ठ मानना भूल है । रामानुज ने धार्मिक समता का प्रचार किया , छुआछूत और ऊँच - नीच का विरोध किया । उन्होंने दीन - दुःखियों की सेवा को धर्म का सर्वोच्च लक्षण बताया । '
श्री रामानुज ने श्रीरंगम की महन्त की गददी का कार्यभार संभाला । इस उच्च पदवी पर पहुँच कर भी उन्होंने मंदिर की आय में से अपने लिए कुछ भी खर्च करना अनुचित समझा , वह सब मंदिर की व्यवस्था में ही खर्च की जाती थी । और रामानुज एक साधु की तरह भिक्षा लेकर ही निर्वाह करते थे ।
श्री रामानुज चरित्र और कर्तव्यपालन को सर्वाधिक महत्व देते थे , उनका कहना था कि जनेऊ पहन लेने से ही कोई ब्राह्मण नहीं हो जाता ।
' मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है , जन्म से मृत्यु तक उसका निर्वाह अन्य अनेक व्यक्तियों के सहयोग से होता है । एक अकेले व्यक्ति के सुधर जाने से , सद्गुण ग्रहण करने से कोई विशेष फल नहीं निकल पाता । इसलिए जिस समाज में हम रहते हैं , जीवन यापन करते हैं उसे उन्नत बनाने का , गिरे हुओं को ऊँचा उठाने का प्रयत्न करना चाहिए ।
श्री रामानुज ने श्रीरंगम की महन्त की गददी का कार्यभार संभाला । इस उच्च पदवी पर पहुँच कर भी उन्होंने मंदिर की आय में से अपने लिए कुछ भी खर्च करना अनुचित समझा , वह सब मंदिर की व्यवस्था में ही खर्च की जाती थी । और रामानुज एक साधु की तरह भिक्षा लेकर ही निर्वाह करते थे ।
श्री रामानुज चरित्र और कर्तव्यपालन को सर्वाधिक महत्व देते थे , उनका कहना था कि जनेऊ पहन लेने से ही कोई ब्राह्मण नहीं हो जाता ।
' मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है , जन्म से मृत्यु तक उसका निर्वाह अन्य अनेक व्यक्तियों के सहयोग से होता है । एक अकेले व्यक्ति के सुधर जाने से , सद्गुण ग्रहण करने से कोई विशेष फल नहीं निकल पाता । इसलिए जिस समाज में हम रहते हैं , जीवन यापन करते हैं उसे उन्नत बनाने का , गिरे हुओं को ऊँचा उठाने का प्रयत्न करना चाहिए ।
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