एक बार विनोबाजी से किसी ने पूछा कि--- " जब आपको एक घंटा या अधिक व्याख्यान देना पड़ता है , तब किस प्रकार उसकी तैयारी करते हैं , कितना सोचते हैं ? " विनोबा का उत्तर था ---- " जब घंटे भर बोलना ही है तो सोचना क्या ? कुछ भी कहा जा सकता है । किन्तु जब मुझे पन्द्रह मिनिट बोलना पड़ता है तब परिश्रम करना पड़ता है । गिने - चुने शब्द ही चुनने और बोलने होते हैं । "
पूछा गया ---- " यदि पांच मिनट ही बोलना हो तो ? सारगर्भित क्या है ? "
विनोबा जी ने कहा ---- " उस पर भलीभांति चिंतन कर फिर बोलता हूँ । ऐसे में अनावश्यक विचारों की काट - छांट करके मात्र विषय की परिधि तक सीमित रह बोलना पड़ता है । "
अनावश्यक बक - झक से समय व्यर्थ होता है , कोई सुधार व बदलाव नहीं आता । सधी संयमित वाणी से निकले प्रभावोत्पादक विचार कुछ क्षणों में ही जनमानस को बदल देते हैं ।
पूछा गया ---- " यदि पांच मिनट ही बोलना हो तो ? सारगर्भित क्या है ? "
विनोबा जी ने कहा ---- " उस पर भलीभांति चिंतन कर फिर बोलता हूँ । ऐसे में अनावश्यक विचारों की काट - छांट करके मात्र विषय की परिधि तक सीमित रह बोलना पड़ता है । "
अनावश्यक बक - झक से समय व्यर्थ होता है , कोई सुधार व बदलाव नहीं आता । सधी संयमित वाणी से निकले प्रभावोत्पादक विचार कुछ क्षणों में ही जनमानस को बदल देते हैं ।
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