जीवन अनन्य सफलताएँ पाने के बावजूद उन्होंने अपने कुटुम्बियों से कहा ----- " देखो भाई , मेरी दरगाह पर ऐसा कुछ न लिखना जिसे मेरी आत्मा स्वीकार न करती हो | यदि कुछ लिखना ही हो तो सीधे - सादे लिख देना ---- " यहीं गाड़ा गया है बर्नार्ड शा न जाने वह बेचारा कौन था । " यही लिखा भी गया था ।
बर्नार्ड शा कहते थे ---- " मैंने अपने हाड़ - मांस के शरीर को जाना किन्तु यह न पहचाना कि मेरे भावों को स्पन्दन और ह्रदय को हलचल देने वाला कौन है । जब मैं उसे नहीं जान पाया तो प्रशंसा किसकी लिखाऊँ ? शरीर की । ऐसा करके मैं अपनी सम्पूर्ण मनुष्य जाति को झूठा नहीं बनाऊंगा । "
बर्नार्ड शा कहते थे ---- " मैंने अपने हाड़ - मांस के शरीर को जाना किन्तु यह न पहचाना कि मेरे भावों को स्पन्दन और ह्रदय को हलचल देने वाला कौन है । जब मैं उसे नहीं जान पाया तो प्रशंसा किसकी लिखाऊँ ? शरीर की । ऐसा करके मैं अपनी सम्पूर्ण मनुष्य जाति को झूठा नहीं बनाऊंगा । "
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