सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला ने काव्य - साधना के माध्यम से लोक - मानस का मार्गदर्शन किया ।
क्रान्तिदर्शी , कविता और उदारता के कारण निराला श्रद्धेय नहीं बने , अपितु उन्होंने अपनी अनेक विभूतियों का समुचित विकास और सदुपयोग किया ।
' राम की शक्ति पूजा ' और ' जागो फिर एक बार ' में कवि ने अपनी भावनाओं की जो सशक्त अभिव्यक्ति दी है वह देश के नवयुवकों को झकझोरने के लिए कम नहीं ।
' प्रेम और सौन्दर्य के साथ - साथ निराला ने शक्ति को भी आराध्य माना और उसी के बल पर शोषितों और दलितों को अपनी दैन्य स्थिति से मुक्त होने की प्रेरणा दी । सफलता शक्तिवानों का वरण करती है । निराला ने इस सिद्धान्त का ठोस प्रतिपादन किया था । राम की शक्ति पूजा में यही विश्वास प्रधान रूप से व्यक्त हुआ है । उनकी मान्यता है कि शस्त्र, शस्त्रबल , सैन्य बल अथवा भौतिक बल ही पर्याप्त नहीं है बल्कि राम का अभीष्ट नैतिक बल है और इसी को चिरस्थायी बनाये रखने के लिए वे शक्ति की आराधना करते हैं ।
अपनी कविता के माध्यम से निराला ने आत्मशक्ति की , नैतिक बल की श्रेष्ठता का प्रतिपादन किया है । आसुरी तत्वों के साथ दैवी पद्धति से मोर्चा लेने की प्रेरणा उनके काव्य दर्शन से मिलती है ।
उनके विचार , उनके आदर्श और उनकी मान्यताएं महान हैं । वे निरंतर विपन्न दशा में परिस्थितियों से जूझते रहे और अंध परम्पराओं से टक्कर लेते रहे । इसी कारण वे ' महाप्राण संबोधित किये गए ।
क्रान्तिदर्शी , कविता और उदारता के कारण निराला श्रद्धेय नहीं बने , अपितु उन्होंने अपनी अनेक विभूतियों का समुचित विकास और सदुपयोग किया ।
' राम की शक्ति पूजा ' और ' जागो फिर एक बार ' में कवि ने अपनी भावनाओं की जो सशक्त अभिव्यक्ति दी है वह देश के नवयुवकों को झकझोरने के लिए कम नहीं ।
' प्रेम और सौन्दर्य के साथ - साथ निराला ने शक्ति को भी आराध्य माना और उसी के बल पर शोषितों और दलितों को अपनी दैन्य स्थिति से मुक्त होने की प्रेरणा दी । सफलता शक्तिवानों का वरण करती है । निराला ने इस सिद्धान्त का ठोस प्रतिपादन किया था । राम की शक्ति पूजा में यही विश्वास प्रधान रूप से व्यक्त हुआ है । उनकी मान्यता है कि शस्त्र, शस्त्रबल , सैन्य बल अथवा भौतिक बल ही पर्याप्त नहीं है बल्कि राम का अभीष्ट नैतिक बल है और इसी को चिरस्थायी बनाये रखने के लिए वे शक्ति की आराधना करते हैं ।
अपनी कविता के माध्यम से निराला ने आत्मशक्ति की , नैतिक बल की श्रेष्ठता का प्रतिपादन किया है । आसुरी तत्वों के साथ दैवी पद्धति से मोर्चा लेने की प्रेरणा उनके काव्य दर्शन से मिलती है ।
उनके विचार , उनके आदर्श और उनकी मान्यताएं महान हैं । वे निरंतर विपन्न दशा में परिस्थितियों से जूझते रहे और अंध परम्पराओं से टक्कर लेते रहे । इसी कारण वे ' महाप्राण संबोधित किये गए ।
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