चिदम्बरम पिल्ले ( जन्म 1872 ) राजनीतिज्ञ व अर्थविज्ञानी ही नहीं तमिल के उदभट विद्वान भी थे । दक्षिण भारत में उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन की बागडोर संभाली । उन्होंने गाँव - गाँव में ' स्वदेशी प्रचार सभा ' की शाखाएं खुलवायीं l बुनकरों व कारीगरों के हित के लिए उन्होंने नेशनल गोडाउन व ' मद्रास एग्रो इंडस्ट्रीयल सोसाइटी लि. ' जैसी संस्थाओं की स्थापना करायी जिससे कि हमारा स्वदेशी व्यापार बढ़े l
1906 में उन्होंने अथक परिश्रम करके ' स्वदेशी स्टीम नेवीगेशन कम्पनी ' आरम्भ की l
पचास - पचास रुपयों के 40 हजार शेयर रखकर उन्होंने भारतीयों की एक समर्थ व्यापारिक यातायात संस्था गठित की l
बम्बई की एक जहाज कम्पनी का एक जहाज किराये पर लेकर पहले पहल तूतीकोरन व लंका के बीच व्यापारिक सेवा आरम्भ की l अंग्रेजी जहाज कम्पनियाँ भारतीय व्यापारियों के माल को लाने व ले जाने में जानबूझकर देरी कर देती थीं जिससे भारतीयों का व्यापार हतोत्साहित हो l इस कम्पनी की स्थापना होने पर भारतीय व्यापारियों की समस्या हल हो गई l उनका काम ऐसा चला कि पहले दो महीनों में ही कंपनी को बीस हजार का लाभ हुआ l
' ब्रिटिश स्टीम नेविगेशन ' इसकी प्रारम्भिक प्रतिस्पर्धा से ही विचलित हो उठा l ' स्वदेशी स्टीम नेवीगेशन कम्पनी ' की कुछ ऐसी धूम मची कि अंग्रेजी जहाज कम्पनी ने उसे उखाड़ने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया l किराया कम करते करते और सुविधाएँ बढ़ाते - बढ़ाते वे यहाँ तक नीचे उतर आये कि उन्होंने बिना भाड़े के माल और बिना किराया लिए यात्रियों को लाना ले जाना आरम्भ कर दिया , फिर भी स्वदेशी स्टीम नेवीगेशन कम्पनी की जड़ें गहराती गईं क्योंकि इसके पीछे स्वदेश प्रेम की भावना जुडी हुई थी l यह स्वदेशी अभियान ब्रिटिश व्यापार तंत्र की जड़ों में तेल डालने जैसा था , इसकी धुरी थे --- चिदम्बरम पिल्लै l
इसीलिए अंग्रेजी सरकार उनके पीछे हाथ धोकर पड़ी थी और उन्हें गिरफ्तार कर छह वर्ष की कठोर सजा दी l
तमिल अभिनेता शिवाजी गणेशन ने उनके जीवन पर फिल्म भी बनायीं l उसका नाट्य रूपान्तर सारे तमिलनाडु में खेला गया l उनके सम्मान व स्मृति में तत्कालीन गवर्नर जनरल राजा जी ने तूतीकोरन व श्रीलंका के बीच चलने वाले एक जहाज का नाम ' चिदम्बरम ' रखा और उन्ही के नाम पर वहां एक हार्बर भी बनाया l 1972 में उनकी स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया गया l
1906 में उन्होंने अथक परिश्रम करके ' स्वदेशी स्टीम नेवीगेशन कम्पनी ' आरम्भ की l
पचास - पचास रुपयों के 40 हजार शेयर रखकर उन्होंने भारतीयों की एक समर्थ व्यापारिक यातायात संस्था गठित की l
बम्बई की एक जहाज कम्पनी का एक जहाज किराये पर लेकर पहले पहल तूतीकोरन व लंका के बीच व्यापारिक सेवा आरम्भ की l अंग्रेजी जहाज कम्पनियाँ भारतीय व्यापारियों के माल को लाने व ले जाने में जानबूझकर देरी कर देती थीं जिससे भारतीयों का व्यापार हतोत्साहित हो l इस कम्पनी की स्थापना होने पर भारतीय व्यापारियों की समस्या हल हो गई l उनका काम ऐसा चला कि पहले दो महीनों में ही कंपनी को बीस हजार का लाभ हुआ l
' ब्रिटिश स्टीम नेविगेशन ' इसकी प्रारम्भिक प्रतिस्पर्धा से ही विचलित हो उठा l ' स्वदेशी स्टीम नेवीगेशन कम्पनी ' की कुछ ऐसी धूम मची कि अंग्रेजी जहाज कम्पनी ने उसे उखाड़ने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया l किराया कम करते करते और सुविधाएँ बढ़ाते - बढ़ाते वे यहाँ तक नीचे उतर आये कि उन्होंने बिना भाड़े के माल और बिना किराया लिए यात्रियों को लाना ले जाना आरम्भ कर दिया , फिर भी स्वदेशी स्टीम नेवीगेशन कम्पनी की जड़ें गहराती गईं क्योंकि इसके पीछे स्वदेश प्रेम की भावना जुडी हुई थी l यह स्वदेशी अभियान ब्रिटिश व्यापार तंत्र की जड़ों में तेल डालने जैसा था , इसकी धुरी थे --- चिदम्बरम पिल्लै l
इसीलिए अंग्रेजी सरकार उनके पीछे हाथ धोकर पड़ी थी और उन्हें गिरफ्तार कर छह वर्ष की कठोर सजा दी l
तमिल अभिनेता शिवाजी गणेशन ने उनके जीवन पर फिल्म भी बनायीं l उसका नाट्य रूपान्तर सारे तमिलनाडु में खेला गया l उनके सम्मान व स्मृति में तत्कालीन गवर्नर जनरल राजा जी ने तूतीकोरन व श्रीलंका के बीच चलने वाले एक जहाज का नाम ' चिदम्बरम ' रखा और उन्ही के नाम पर वहां एक हार्बर भी बनाया l 1972 में उनकी स्मृति में डाक टिकट भी जारी किया गया l
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