भारत के प्रसिद्ध साहित्यकार तथा मराठी भाषा के महान लेखक मामा वरेरकर ने साहित्य के माध्यम से अपना जीवन राष्ट्र व समाज को समर्पित कर दिया ।
सबसे पहले 1926 में उन्होंने दिल्ली में स्वामी श्रद्धानन्द के सम्पर्क में रहकर ' विधवा कुमारी ' नामक एक उपन्यास लिखा । उनके इस उपन्यास का उद्देश्य सामाजिक समस्याओं की ओर जनता का ध्यान आकर्षित करना था । इसके बाद गांधीजी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से गांधीजी के उद्देश्य में सहयोग करने के लिए ' क्रीतदास ' नामक एक नाटक लिखा । इस नाटक में उन्होंने जहाँ एक और खादी के प्रचार तथा सरकारी अदालतों के बहिष्कार की प्रेरणा दी वहां वंचक देश भक्तों की भी खूब खबर ली ।
उनके इस नाटक का मूल सन्देश यह रहा कि----- ' मौखिक देश भक्ति से भारत का उद्धार नहीं होगा । इसके लिए रचनात्मक कार्यक्रम लेकर कर्मक्षेत्र में उतरना होगा । साथ ही एक ओर देश भक्ति का जामा पहन कर जनता के सामने और दूसरी और श्रद्धा का लाभ उठाकर लोगों को लूटना देश भक्ति नहीं , देशद्रोह है । ऐसे वंचक देश भक्तों से जन - साधारण को सदैव सावधान रहना चाहिए । '
मामाजी के इस नाटक ने इतना कार्य कर दिखाया जितना कि बहुत से प्रचारक मिलकर भी न कर पाते । मामाजी जिस जनता के लिए साहित्य लिखते थे उसमे उसका प्रचार करने का भी प्रयत्न किया करते थे ।
सबसे पहले 1926 में उन्होंने दिल्ली में स्वामी श्रद्धानन्द के सम्पर्क में रहकर ' विधवा कुमारी ' नामक एक उपन्यास लिखा । उनके इस उपन्यास का उद्देश्य सामाजिक समस्याओं की ओर जनता का ध्यान आकर्षित करना था । इसके बाद गांधीजी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर उन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से गांधीजी के उद्देश्य में सहयोग करने के लिए ' क्रीतदास ' नामक एक नाटक लिखा । इस नाटक में उन्होंने जहाँ एक और खादी के प्रचार तथा सरकारी अदालतों के बहिष्कार की प्रेरणा दी वहां वंचक देश भक्तों की भी खूब खबर ली ।
उनके इस नाटक का मूल सन्देश यह रहा कि----- ' मौखिक देश भक्ति से भारत का उद्धार नहीं होगा । इसके लिए रचनात्मक कार्यक्रम लेकर कर्मक्षेत्र में उतरना होगा । साथ ही एक ओर देश भक्ति का जामा पहन कर जनता के सामने और दूसरी और श्रद्धा का लाभ उठाकर लोगों को लूटना देश भक्ति नहीं , देशद्रोह है । ऐसे वंचक देश भक्तों से जन - साधारण को सदैव सावधान रहना चाहिए । '
मामाजी के इस नाटक ने इतना कार्य कर दिखाया जितना कि बहुत से प्रचारक मिलकर भी न कर पाते । मामाजी जिस जनता के लिए साहित्य लिखते थे उसमे उसका प्रचार करने का भी प्रयत्न किया करते थे ।
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