" जन भावनाओं का दमन वह भी आतंक के बल पर , कोई भी सरकार सफल नहीं रही है । इतिहास इस बात का साक्षी है । मन की पाशविक प्रक्रिया विद्रोह की आग को कुछ क्षणों के लिए भले ही कम कर दे , परन्तु वह अन्दर ही अन्दर तो सुलगती रहती है और जब विस्फोट होता है तो बड़ी से बड़ी संहारक शक्तियां और साम्राज्य ध्वस्त हो जाते हैं । "
1918 में जब जलियांवाला बाग में निरपराध भारतीय जनता की एक सभा पर गोलियों की वर्षा की गई , तब सरदार ऊधमसिंह बारह वर्ष के थे , वे गोलियां चलाने वाले पर बहुत कुपित हुए और कहा ----- " मैं भी इसको मारूंगा । " प्रतिशोध की यह अग्नि उनके ह्रदय - कुण्ड में लगातार 22 वर्षों तक जलती रही ।
ऊधमसिंह इंजीनियर बने । दैनिक कृत्य संपन्न करते , पढ़ते - लिखते उन्हें अपना मिशन याद रहता कि मुझे उस हत्यारे की दण्ड देना है जिसने मेरे भाइयों को गोली से भूनकर रख दिया है । इस प्रकार प्रतीक्षा करते - करते जब उनका धैर्य समाप्त हो गया तो आगे पढ़ने का बहाना बना कर वे इंग्लैंड पहुँच गये । 13 मार्च 1940 को यह प्रतीक्षा समाप्त हुई । लन्दन के केक्सटन हाल में एक सार्वजनिक सभा हुई जिसमे डायर का भाषण भी था । ऊधमसिंह जाकर मंच के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गये और जैसे ही डायर जिसके निर्देश पर जलियांवाला गोली - काण्ड हुआ था भाषण देने खड़ा हुआ , वैसे ही ऊधमसिंह अपने स्थान पर खड़े हो गये और अपने रिवाल्वर से निशाना बनाकर तीन वार किये , डायर वहीँ धराशायी हो गया , उसका वहीँ प्राणान्त हो गया ।
1918 में जब जलियांवाला बाग में निरपराध भारतीय जनता की एक सभा पर गोलियों की वर्षा की गई , तब सरदार ऊधमसिंह बारह वर्ष के थे , वे गोलियां चलाने वाले पर बहुत कुपित हुए और कहा ----- " मैं भी इसको मारूंगा । " प्रतिशोध की यह अग्नि उनके ह्रदय - कुण्ड में लगातार 22 वर्षों तक जलती रही ।
ऊधमसिंह इंजीनियर बने । दैनिक कृत्य संपन्न करते , पढ़ते - लिखते उन्हें अपना मिशन याद रहता कि मुझे उस हत्यारे की दण्ड देना है जिसने मेरे भाइयों को गोली से भूनकर रख दिया है । इस प्रकार प्रतीक्षा करते - करते जब उनका धैर्य समाप्त हो गया तो आगे पढ़ने का बहाना बना कर वे इंग्लैंड पहुँच गये । 13 मार्च 1940 को यह प्रतीक्षा समाप्त हुई । लन्दन के केक्सटन हाल में एक सार्वजनिक सभा हुई जिसमे डायर का भाषण भी था । ऊधमसिंह जाकर मंच के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गये और जैसे ही डायर जिसके निर्देश पर जलियांवाला गोली - काण्ड हुआ था भाषण देने खड़ा हुआ , वैसे ही ऊधमसिंह अपने स्थान पर खड़े हो गये और अपने रिवाल्वर से निशाना बनाकर तीन वार किये , डायर वहीँ धराशायी हो गया , उसका वहीँ प्राणान्त हो गया ।
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