उन्होंने राजनीति में जिस सत्य और अहिंसा का अवलम्बन किया था उसको आजीवन निबाहा । उन्होंने किसी भी लाभ के लिए असत्य अथवा हिंसा का रास्ता नहीं अपनाया । उन्हें जितना भारतीयों ने समझा उससे कम अंग्रेजों ने भी नहीं समझा । इसका प्रमाण इंग्लैंड के श्री वर्डउड के उस पत्र से हो जाता है , जो उन्होंने ' टाइम्स ऑफ इंडिया ' के लन्दन स्थित प्रतिनिधि को लिखा
था ------- " दादाभाई नौरोजी उन लोगों में से थे , जिनको किसी भी विषय का सम्पूर्ण ज्ञान था जब भी मैं उनसे मिला , उन्होंने अपने विषय में कोई बात नहीं की , उन्होंने सदैव अपने कार्यों के विषय में बात की और वह भी वर्तमान वर्तमान की । उनसे बात करके ऐसा लगता था कि मृत्यु हो जाने पर भी दादाभाई मरेंगे नहीं , केवल उनका पार्थिव शरीर ही मरेगा । वे सदा - सर्वदा के लिए अजर - अमर ही रहेंगे । "
था ------- " दादाभाई नौरोजी उन लोगों में से थे , जिनको किसी भी विषय का सम्पूर्ण ज्ञान था जब भी मैं उनसे मिला , उन्होंने अपने विषय में कोई बात नहीं की , उन्होंने सदैव अपने कार्यों के विषय में बात की और वह भी वर्तमान वर्तमान की । उनसे बात करके ऐसा लगता था कि मृत्यु हो जाने पर भी दादाभाई मरेंगे नहीं , केवल उनका पार्थिव शरीर ही मरेगा । वे सदा - सर्वदा के लिए अजर - अमर ही रहेंगे । "
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