ज्यां पाल सात्र ( फ्रांस ) संसार के माने हुए दार्शनिक थे । उनके सामने अनेकों कठिनाइयाँ थीं , उनकी एक आँख प्रारम्भ से ही खराब थी पर एक दिन के लिए भी कभी किसी ने उन्हें खिन्न या उदास नहीं देखा । वे परिस्थितियों के साथ तालमेल बैठाते थे और दूसरों को भी वैसी ही शिक्षा देते थे । उदाहरणों के माध्यम से वे लोगों को यह समझाते थे कि साधन संपन्न व्यक्ति किस प्रकार क्षमताओं को सत्प्रयोजन में लगाकर अपने क्षेत्र में प्रशंसा के पात्र बने ।
उनकी शिक्षाओं ने अनेकों के मुरझाये जीवन में उल्लास उत्पन्न करने में सफलता पाई । सात्र ने परामर्श के लिए कई घंटों का समय निर्धारित कर रखा था । उसमे वे उन्ही प्रसंगों को छेड़ते थे जिसमे कठिनाइयों के बीच प्रसन्नता से रह सकना और सफलता के मार्ग पर चल सकना संभव हुआ हो । ऐसी घटनाओं के लिए उनकी स्मृति एक विश्व कोष मानी जाती थी ।
वह लोगों को यह रहस्य समझाते थे कि मनुष्य का पराक्रम कितना सामर्थ्यवान है कि किसी को भी , किस प्रकार आगे बढ़ाने और ऊँचा उठाने में कारगर हो सकता है ।
उनकी शिक्षाओं ने अनेकों के मुरझाये जीवन में उल्लास उत्पन्न करने में सफलता पाई । सात्र ने परामर्श के लिए कई घंटों का समय निर्धारित कर रखा था । उसमे वे उन्ही प्रसंगों को छेड़ते थे जिसमे कठिनाइयों के बीच प्रसन्नता से रह सकना और सफलता के मार्ग पर चल सकना संभव हुआ हो । ऐसी घटनाओं के लिए उनकी स्मृति एक विश्व कोष मानी जाती थी ।
वह लोगों को यह रहस्य समझाते थे कि मनुष्य का पराक्रम कितना सामर्थ्यवान है कि किसी को भी , किस प्रकार आगे बढ़ाने और ऊँचा उठाने में कारगर हो सकता है ।
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