' जाति - पांति पूछे नहीं कोई , हरिहि भजे सो हरि का होई ।
भगवान राम और कृष्ण के चरित्र में ऐसे अनेकों उदाहरण मिलते हैं जिनसे स्पष्ट है कि वे जाति - पांति का भेदभाव नहीं करते थे । निषादराज जाति से हीन थे लेकिन उनका उत्कट प्रेम व भक्तिपूर्ण भावनाओं को देखकर भगवान श्रीराम ने उनका आतिथ्य स्वीकार किया और भ्राता भरत की तरह अपने गले लगाया ।
श्री हनुमानजी जाति से वानर थे लेकिन अपने गुणों के कारण वे श्रीराम के जीवन के एक अंग बन गए । वनवास से लौटने के बाद अंगद , सुग्रीव , जामवंत आदि सभी लोग अपने - अपने स्थान को वापिस चले गए लेकिन श्रीराम ने हनुमानजी को अपने पास रखा ।
वृद्ध जटायु ने सीताजी की मुक्ति के लिए अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया । भगवान श्रीराम ने घायल जटायु को अपने सीने से लगा लिया और उसका प्राणांत हो जाने पर अपने कुटुम्बी स्वजन की भांति उसका दाह - संस्कार किया ।
मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान होता है । रावण विद्वान था , ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुआ था , पुलस्त्य ऋषि का वंशज था फिर भी दुष्कर्मों के कारण असुर बन गया ।
भगवान राम और कृष्ण के चरित्र में ऐसे अनेकों उदाहरण मिलते हैं जिनसे स्पष्ट है कि वे जाति - पांति का भेदभाव नहीं करते थे । निषादराज जाति से हीन थे लेकिन उनका उत्कट प्रेम व भक्तिपूर्ण भावनाओं को देखकर भगवान श्रीराम ने उनका आतिथ्य स्वीकार किया और भ्राता भरत की तरह अपने गले लगाया ।
श्री हनुमानजी जाति से वानर थे लेकिन अपने गुणों के कारण वे श्रीराम के जीवन के एक अंग बन गए । वनवास से लौटने के बाद अंगद , सुग्रीव , जामवंत आदि सभी लोग अपने - अपने स्थान को वापिस चले गए लेकिन श्रीराम ने हनुमानजी को अपने पास रखा ।
वृद्ध जटायु ने सीताजी की मुक्ति के लिए अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया । भगवान श्रीराम ने घायल जटायु को अपने सीने से लगा लिया और उसका प्राणांत हो जाने पर अपने कुटुम्बी स्वजन की भांति उसका दाह - संस्कार किया ।
मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान होता है । रावण विद्वान था , ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुआ था , पुलस्त्य ऋषि का वंशज था फिर भी दुष्कर्मों के कारण असुर बन गया ।
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