प्रख्यात दार्शनिक और वैज्ञानिक बर्ट्रेंड रसेल ने अपनी जीवन गाथा में लिखा है ---- ' मेरी पहली पत्नी इतनी भली थी कि उसकी स्मृति कभी मस्तिष्क पर से उतरी ही नहीं l दोनों के बीच अगाध प्रेम था , पर एक दिन किसी बात पर अनबन हो गई l नाराजगी में दफ्तर गया l रास्ते में जो विचार बने , उन्हें पत्नी को बता देने में सच्चाई समझी l वापस लौट आया , पत्नी ने कारण पूछा तो कहा , " तुम्हे बिना छिपाए वस्तुस्थिति बताने आया हूँ कि अब तुम्हारे लिए मेरे मन में तनिक भी प्रेम नहीं रहा l "
पत्नी उस समय तो कुछ नहीं बोली , पर उसके मन में यह बात घर कर गई कि मैं कपटी हूँ , अब तक व्यर्थ ही प्रेम की दुहाई देता रहा l खाई दिन - दिन चौड़ी होती गई l बिना टकराव के भी उदासी बढ़ती गई l मेरे सफाई देने का भी कुछ असर न हुआ और परिणति तलाक के रूप में सामने आई l
अब मैं महसूस करता हूँ कि जीवन में बन पड़ी अनेक भूलों में से यह एक बहुत बड़ी भूल थी , जिसमे मन की बात तत्काल उगलने की उतावली अपनाई गई l उस सत्य को यदि छुपाये रहता तो शायद वह असत्य भाषण की तुलना में हलका पाप होता l यहाँ यह उक्ति याद रखी जानी चाहिए कि - ' अप्रिय सत्य न बोले ' --- यह व्यावहारिक शिष्टाचार है कि हो बात जीवन साथी के मन में चुभती हो , उसे कहने से बचा जाये l
पत्नी उस समय तो कुछ नहीं बोली , पर उसके मन में यह बात घर कर गई कि मैं कपटी हूँ , अब तक व्यर्थ ही प्रेम की दुहाई देता रहा l खाई दिन - दिन चौड़ी होती गई l बिना टकराव के भी उदासी बढ़ती गई l मेरे सफाई देने का भी कुछ असर न हुआ और परिणति तलाक के रूप में सामने आई l
अब मैं महसूस करता हूँ कि जीवन में बन पड़ी अनेक भूलों में से यह एक बहुत बड़ी भूल थी , जिसमे मन की बात तत्काल उगलने की उतावली अपनाई गई l उस सत्य को यदि छुपाये रहता तो शायद वह असत्य भाषण की तुलना में हलका पाप होता l यहाँ यह उक्ति याद रखी जानी चाहिए कि - ' अप्रिय सत्य न बोले ' --- यह व्यावहारिक शिष्टाचार है कि हो बात जीवन साथी के मन में चुभती हो , उसे कहने से बचा जाये l
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