जर्मनी के सम्राट फ्रेडरिक महान यह जानकर चिंतित हो उठे कि उनके देश की आर्थिक स्थिति निरंतर दयनीय होती जा रही है l जब राजकोष काफी कम रह गया तो उन्होंने एक दिन अपने राज्य के अधिकारियों को विचार - विमर्श हेतु बुलाया और पूछा ----- " राजकोष के रिक्त होने का कारण क्या है ? " दरबार में यह प्रश्न पूछते ही सन्नाटा छा गया और सभी एक दूसरे का मुंह देखने लगे l उन्हों अधिकारियों में उपस्थित एक अनुभवी महामंत्री ने सम्राट से कहा कि वे इस प्रश्न का उत्तर देने को तैयार हैं l यह कहकर उन्होंने मेज पर प्याले में रखे बरफ के एक टुकड़े को उठाया और उसे अपने निकट बैठे व्यक्ति को देते हुए कहा ---- " इसे आपके पास बैठे हुए व्यक्ति को दे दें l इसे एक के बाद एक ------ दूसरे हाथों में बढ़ाते हुए अंतत: सम्राट तक पहुँचाना है l देखते - ही - देखते वह बरफ का टुकड़ा अनेक हाथों से होता हुआ सम्राट के हाथ में पहुंचा l वहां पहुँचने तक उसका आकार चौथाई हो चुका था l
सम्राट ने पूछा ----- " बरफ का यह टुकड़ा तो यहाँ आते - आते छोटा हो गया है l इसके माध्यम से आप क्या कहना चाहते हैं ? " वृद्ध महामंत्री ने अपना मंतव्य स्पष्ट करते हुए कहा --- " महाराज ! जिस तरह यह बरफ का टुकड़ा कई हाथों से होता हुआ आपके हाथों तक पहुँचने में अपने मूल वजन का चौथाई रह गया , वैसे ही प्रजा से वसूले गए कर की राशि कई हाथों से गुजरने के कारण सरकारी कोष तक पहुँचते पहुँचते चौथाई ही रह जाती है l " सम्राट वृद्ध महामंत्री का कहा समझ गए और उन्होंने कड़े निर्णय लेते हुए भ्रष्ट कर्मचारियों की छंटनी शुरू कर दी l कुछ ही दिनों में राजकोष में वृद्धि होने लगी l
सम्राट ने पूछा ----- " बरफ का यह टुकड़ा तो यहाँ आते - आते छोटा हो गया है l इसके माध्यम से आप क्या कहना चाहते हैं ? " वृद्ध महामंत्री ने अपना मंतव्य स्पष्ट करते हुए कहा --- " महाराज ! जिस तरह यह बरफ का टुकड़ा कई हाथों से होता हुआ आपके हाथों तक पहुँचने में अपने मूल वजन का चौथाई रह गया , वैसे ही प्रजा से वसूले गए कर की राशि कई हाथों से गुजरने के कारण सरकारी कोष तक पहुँचते पहुँचते चौथाई ही रह जाती है l " सम्राट वृद्ध महामंत्री का कहा समझ गए और उन्होंने कड़े निर्णय लेते हुए भ्रष्ट कर्मचारियों की छंटनी शुरू कर दी l कुछ ही दिनों में राजकोष में वृद्धि होने लगी l
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