' बंकिम बाबू ने साहित्य - सृजन द्वारा देश में एक ज्योति जगाई , जिसके प्रकाश से आज भी हमारे ह्रदय आलोकित हो रहे हैं l उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि साहित्य की शक्ति अल्प नहीं है , यदि उसका विचार पूर्वक उपयोग किया जाये तो वह राष्ट्र , समाज और व्यक्ति के उत्थान का एक महान साधन बन सकती है l '
उन्होंने अपने कई उपन्यासों द्वारा राष्ट्र निर्माण और स्वाधीनता का मार्गदर्शन किया l इस द्रष्टि से उनका ' आनंदमठ ' भारतीय साहित्य में बहुत ऊँचा स्थान प्राप्त कर चुका है l इस
' आनंदमठ ' में ही प्रथम बार ' वन्दे - मातरम् ' मन्त्र का उल्लेख किया गया है l
एक समय था जब ' वन्दे - मातरम् ' के जयघोष से भारत की शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार थर - थर कांपने लगी थी और इसका उच्चारण करने पर सैकड़ों देशभक्तों को जेल और बैतों की सजा सहन करनी पड़ी थी l आज भी हमारे देश के बालक से लेकर वृद्ध तक ' वन्दे - मातरम् ' को सुनकर भारत भूमि के प्रति जिस श्रेष्ठतम भाव का अनुभव करते हैं , उससे इसकी महत्ता स्पष्ट हो जाती है l
उन्होंने अपने कई उपन्यासों द्वारा राष्ट्र निर्माण और स्वाधीनता का मार्गदर्शन किया l इस द्रष्टि से उनका ' आनंदमठ ' भारतीय साहित्य में बहुत ऊँचा स्थान प्राप्त कर चुका है l इस
' आनंदमठ ' में ही प्रथम बार ' वन्दे - मातरम् ' मन्त्र का उल्लेख किया गया है l
एक समय था जब ' वन्दे - मातरम् ' के जयघोष से भारत की शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार थर - थर कांपने लगी थी और इसका उच्चारण करने पर सैकड़ों देशभक्तों को जेल और बैतों की सजा सहन करनी पड़ी थी l आज भी हमारे देश के बालक से लेकर वृद्ध तक ' वन्दे - मातरम् ' को सुनकर भारत भूमि के प्रति जिस श्रेष्ठतम भाव का अनुभव करते हैं , उससे इसकी महत्ता स्पष्ट हो जाती है l
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