महामनीषी चार्ल्स डिकेन्स बचपन से ही निबंध लिखने के बड़े शौकीन थे , किन्तु वे स्वयं लिखकर स्वयं ही फाड़ दिया करते थे l उन्हें मन में यह विश्वास ही नहीं जम पाता कि वे लेख अच्छे स्तर के होंगे l चार्ल्स अभी छोटे ही थे कि उनके पिता को किसी से लिया हुआ कर्ज न चुका सकने के कारण जेल जाना पड़ा l अब तो घर पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा l चार्ल्स डिकेन्स को लंदन कि एक अँधेरी कोठरी में स्थित किसी छोटे से उद्दोग में लेवल चिपकाने का काम करना पड़ा l रात को सबके सो जाने पर वे निबंध लिखते और तहखाने में छिपा देते
एक दिन अकस्मात ही उन्होंने देखा कि उनका एक निबंध एक मासिक पत्रिका में छपा है , उसके साथ ही सम्पादक ने अपनी और से एक प्रशंसात्मक टिप्पणी भी प्रकाशित की है l प्रोत्साहन के वो शब्द थे ---- ' तुम्हारा मस्तिष्क निबंध लिखने के लिए बहुत ही उपयुक्त है l " ये शब्द उनके लिए जीवन मन्त्र बन गए l इससे उनमे आत्मविश्वास जागा और उन्होंने इतनी प्रगति की कि वे अपने समय के सबसे बड़े निबंध लेखक बन गए l
एक दिन अकस्मात ही उन्होंने देखा कि उनका एक निबंध एक मासिक पत्रिका में छपा है , उसके साथ ही सम्पादक ने अपनी और से एक प्रशंसात्मक टिप्पणी भी प्रकाशित की है l प्रोत्साहन के वो शब्द थे ---- ' तुम्हारा मस्तिष्क निबंध लिखने के लिए बहुत ही उपयुक्त है l " ये शब्द उनके लिए जीवन मन्त्र बन गए l इससे उनमे आत्मविश्वास जागा और उन्होंने इतनी प्रगति की कि वे अपने समय के सबसे बड़े निबंध लेखक बन गए l
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