' मालवीयजी ने हिन्दू विश्वविद्यालय की सफलता और वहां के विद्दार्थियों तथा अध्यापकों को कर्तव्यपरायण तथा उन्नतिशील बनाने के लिए अपना जीवन ही अर्पण कर दिया l '
मालवीयजी केवल लड़कों की शिक्षा लिए ही प्रयत्नशील नहीं रहे वरन लड़कियों की शिक्षा को भी वे उतना ही आवश्यक और महत्वपूर्ण समझते थे l उन्होंने हिन्दू विश्वविद्यालय में लड़कों की शिक्षा की तरह कन्या - शिक्षा की भी उचित व्यवस्था की l उस समय में भी उन्होंने लड़कियों को वेद पढ़ने की अनुमति दी l
स्त्री - शिक्षा के महत्व पर उन्होंने कहा था ----- " हमारा सच्चरित्र होना , ब्रह्मचारी बनना अथवा अन्धविश्वास का परित्याग करना तभी हो सकता है जब हम अपने स्त्री - वर्ग का सुधार कर उसे अपने अनुकूल बना लें l जब तक हम नारी - शक्ति को अपने साथ लेकर नहीं चलते , तब तक हम कभी जातीय - जीवन की लहलहाती लता को देखकर आनन्दित नहीं हो सकते l क्योंकि मनुष्य समाज का कल्याण अथवा अकल्याण , उच्च अथवा नीच होना स्त्रियों के ही हाथ में है l ------ यदि स्त्रियाँ पुरुषों के साथ रहकर उनके लाभ अथवा सुख की सहायक न हों , तो पुरुष कभी सुखी अथवा आनन्दित नहीं रह सकते l पुरुषों की उन्नति अथवा अवनति वास्तव में स्त्रियों के हाथ में है l --------- स्त्रियों को ईश्वर की दी हुई विपुल शक्ति को जीवन के उच्च आदर्श के सामने लाकर सुगठित करना और कर्मशील बनाना ही हमारा उद्देश्य है और वही हमारे जातीय जीवन का मूल और कर्तव्य - कर्म है l "
मालवीयजी केवल लड़कों की शिक्षा लिए ही प्रयत्नशील नहीं रहे वरन लड़कियों की शिक्षा को भी वे उतना ही आवश्यक और महत्वपूर्ण समझते थे l उन्होंने हिन्दू विश्वविद्यालय में लड़कों की शिक्षा की तरह कन्या - शिक्षा की भी उचित व्यवस्था की l उस समय में भी उन्होंने लड़कियों को वेद पढ़ने की अनुमति दी l
स्त्री - शिक्षा के महत्व पर उन्होंने कहा था ----- " हमारा सच्चरित्र होना , ब्रह्मचारी बनना अथवा अन्धविश्वास का परित्याग करना तभी हो सकता है जब हम अपने स्त्री - वर्ग का सुधार कर उसे अपने अनुकूल बना लें l जब तक हम नारी - शक्ति को अपने साथ लेकर नहीं चलते , तब तक हम कभी जातीय - जीवन की लहलहाती लता को देखकर आनन्दित नहीं हो सकते l क्योंकि मनुष्य समाज का कल्याण अथवा अकल्याण , उच्च अथवा नीच होना स्त्रियों के ही हाथ में है l ------ यदि स्त्रियाँ पुरुषों के साथ रहकर उनके लाभ अथवा सुख की सहायक न हों , तो पुरुष कभी सुखी अथवा आनन्दित नहीं रह सकते l पुरुषों की उन्नति अथवा अवनति वास्तव में स्त्रियों के हाथ में है l --------- स्त्रियों को ईश्वर की दी हुई विपुल शक्ति को जीवन के उच्च आदर्श के सामने लाकर सुगठित करना और कर्मशील बनाना ही हमारा उद्देश्य है और वही हमारे जातीय जीवन का मूल और कर्तव्य - कर्म है l "
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