भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है --- " जैसा आचरण एक श्रेष्ठ पुरुष का होता है , अन्य लोग भी वैसा ही आचरण करते हैं , उसी का अनुसरण करते हैं l " विशिष्ट व्यक्तियों का आचरण सारे समाज के उत्थान और पतन का कारण बन सकता है l
एक कथा है ------ एक समय की बात है समाज में असुरता , दुष्प्रवृत्तियां इतनी बढ़ गई थीं कि लोगों का जीवन , उनका परिवार सुरक्षित नहीं था l अत: प्राणरक्षा के लिए ब्राह्मणों के दल ने अपने परिवार समेत महर्षि गौतम के आश्रम में शरण ली l महर्षि ने उनका स्वागत किया और कहा कि आप सब यहाँ निवास करें l समय बीतने लगा l ब्राह्मणों के क्षेत्र से भी समाचार आने लगे कि वहां दुष्ट और अवांछनीय तत्वों के उत्पात शांत हुए हैं l
एक दिन भ्रमण करते हुए नारद जी आये तो उन्होंने महर्षि गौतम की बहुत प्रशंसा की और कहा --- इतने ब्राह्मणों को आश्रय देने से उनकी कीर्ति चारों और फ़ैल रही है l यह सब सुनकर ब्राह्मणों के मन में ईर्ष्या कि आग भड़क उठी l एक दिन वे अपने क्षेत्र जाने कि तैयारी करने लगे महर्षि हवन आदि कर के उठे और अपनी पर्णकुटी जाने लगे तो उन्होंने देखा कि आश्रम के आँगन में एक दुबली - पतली गाय पड़ी है l यह देखने के लिए कि वह जीवित है या मृत , उन्होंने उस पर हलके से दण्ड का प्रहार किया , उसी समय चारों और से ब्राह्मण निकल आये और शोर मचाने लगे ---- हाय ! हाय ! इस पुनीत ब्रह्मवेला में गौहत्या कर दी l छोडो इस ढोंगी का आश्रम l संसार के सामने उनके पाप प्रकट हो जाने दो l "
महर्षि गौतम ने ध्यानस्थ होकर देखा तो पाया कि यह ब्राह्मणों द्वारा बनाया गया गाय का पुतला है , जो उन्हें कलंकित करने के लिए रचा गया षड्यंत्र है l ऋषि ने अपनी गंभीर वाणी में कहा ----- ब्राह्मणों ! मैं समझ गया कि आपने क्षेत्र में उत्पात क्यों बढ़े हैं ? समाज के मूर्धन्य होकर भी आप लोगों के ह्रदय में इस प्रकार ईर्ष्या और कलुष है तो समाज में अशांति , अव्यवस्था तो होगी ही l "
एक कथा है ------ एक समय की बात है समाज में असुरता , दुष्प्रवृत्तियां इतनी बढ़ गई थीं कि लोगों का जीवन , उनका परिवार सुरक्षित नहीं था l अत: प्राणरक्षा के लिए ब्राह्मणों के दल ने अपने परिवार समेत महर्षि गौतम के आश्रम में शरण ली l महर्षि ने उनका स्वागत किया और कहा कि आप सब यहाँ निवास करें l समय बीतने लगा l ब्राह्मणों के क्षेत्र से भी समाचार आने लगे कि वहां दुष्ट और अवांछनीय तत्वों के उत्पात शांत हुए हैं l
एक दिन भ्रमण करते हुए नारद जी आये तो उन्होंने महर्षि गौतम की बहुत प्रशंसा की और कहा --- इतने ब्राह्मणों को आश्रय देने से उनकी कीर्ति चारों और फ़ैल रही है l यह सब सुनकर ब्राह्मणों के मन में ईर्ष्या कि आग भड़क उठी l एक दिन वे अपने क्षेत्र जाने कि तैयारी करने लगे महर्षि हवन आदि कर के उठे और अपनी पर्णकुटी जाने लगे तो उन्होंने देखा कि आश्रम के आँगन में एक दुबली - पतली गाय पड़ी है l यह देखने के लिए कि वह जीवित है या मृत , उन्होंने उस पर हलके से दण्ड का प्रहार किया , उसी समय चारों और से ब्राह्मण निकल आये और शोर मचाने लगे ---- हाय ! हाय ! इस पुनीत ब्रह्मवेला में गौहत्या कर दी l छोडो इस ढोंगी का आश्रम l संसार के सामने उनके पाप प्रकट हो जाने दो l "
महर्षि गौतम ने ध्यानस्थ होकर देखा तो पाया कि यह ब्राह्मणों द्वारा बनाया गया गाय का पुतला है , जो उन्हें कलंकित करने के लिए रचा गया षड्यंत्र है l ऋषि ने अपनी गंभीर वाणी में कहा ----- ब्राह्मणों ! मैं समझ गया कि आपने क्षेत्र में उत्पात क्यों बढ़े हैं ? समाज के मूर्धन्य होकर भी आप लोगों के ह्रदय में इस प्रकार ईर्ष्या और कलुष है तो समाज में अशांति , अव्यवस्था तो होगी ही l "
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