वर्ष 1857 देश में स्वाधीनता का बिगुल बज चुका था l अवध के बहादुर सिपाहियों का नेतृत्व स्वयं बेगम हजरत महल कर रही थीं , जबकि अंग्रेज फौज की कमान लार्ड कैनिंग ने सम्हाल रखी थी l
उनके कई वफादारों ने सलाह दी कि आप जंग से दूर रहें , किसी सुरक्षित स्थान पर छुप जाएँ किन्तु बेगम हजरत महल ने कहा --- " झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, कानपुर में तात्यां टोपे और पेशवा नाना साहब इस आजादी की लड़ाई में कूद पड़े हैं l ऐसे में हमारा लखनऊ पीछे रहे , यह उचित न होगा l " अहमदुल्ला ने कहा --- " आपकी बातें वाजिब हैं बेगम साहिबा ! पर यह न भूलें कि आप औरत हैं ? " इस बात को सुनकर बेगम हजरत महल हंस दीं और बोलीं ---- " क्या झाँसी की रानी औरत नहीं है ? अहमदुल्ला ने टोकना चाहा --- " लेकिन वह तो हिन्दू हैं l " इस पर बेगम के माथे पर बल पड़ गए , उनकी आवाज तेज हो गई , वह कहने लगीं ---- " यह किसी को नहीं भूलना चाहिए कि यह देश हिंदू - मुसलमानों का नहीं , मर्दों या औरतों का नहीं , सभी देशवासियों का है l इसकी आन - बान और शान के लिए मर - मिटने का सबको बराबर का हक है और मुझसे मेरे इस हक को कोई नहीं छीन सकता l सबसे पहले मैं हिन्दुस्तान की बेटी हूँ , बाद में अवध की बेगम l "
उनकी भावनाओं को देखकर सभी एक साथ बोल पड़े --- " बेगम साहिबा ! हम सभी आपकी कमान में आजादी की यह जंग लड़ेंगे और जीतेंगे भी l " हिन्दुस्तान आखिरी शहंशाह बहादुरशाह जफर को यह खबर मिली तो फूले न समाये , उन्होंने बेगम साहिबा के पास पैगाम भेजा --- ' हमें फक्र है तुम पर l जब तक बेगम हजरत महल और रानी लक्ष्मीबाई जैसी बेटियां हमारे मुल्क में हैं , कोई भी विदेशी ताकत इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती l इंशाअल्लाह ! हम रहें या न रहें हिन्दुस्तान को आजादी जरुर मिलेगी l हम तुम्हे शुक्रिया अदा करते हैं और तुम्हारे बेटे को अवध का नवाब घोषित करते हैं l " बूढ़े बादशाह के इस पैगाम को बेगम हजरत महल ने अपने सिर से लगाया और अपनी फौज के साथ पहुँच गईं---- चिनहट के मैदान में l जितने दिन यह जंग अली , उतने दिन बेगम हजरत महल खुद हाथी पर बैठकर अपनी फौज का हौसला बढ़ाती रहीं l उनके साहस , शौर्य , शस्त्र - संचालन, व्यूह रचना ने अंगरेजी फौज को मैदान छोड़कर भागने पर मजबूर कर दिया l जनरल आउटरम एवं कॉलिन कैम्पबेल को भी मानना पड़ा कि बेगम हजरत महल ने अंग्रेजी फौज में खौफ पैदा कर दिया था l इतिहासकार ताराचंद ने लिखा है कि --- " 30 जून 1857 से 21 मार्च 1858 तक बेगम हजरत महल ने लखनऊ में नए सिरे से शासन सम्हाला और आजादी की लड़ाई का नेतृत्व किया l " हिन्दुस्तान की बेटी बेगम हजरत महल की ये जंग इतिहास के पन्नों में सदा अमर रहेगी l
उनके कई वफादारों ने सलाह दी कि आप जंग से दूर रहें , किसी सुरक्षित स्थान पर छुप जाएँ किन्तु बेगम हजरत महल ने कहा --- " झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, कानपुर में तात्यां टोपे और पेशवा नाना साहब इस आजादी की लड़ाई में कूद पड़े हैं l ऐसे में हमारा लखनऊ पीछे रहे , यह उचित न होगा l " अहमदुल्ला ने कहा --- " आपकी बातें वाजिब हैं बेगम साहिबा ! पर यह न भूलें कि आप औरत हैं ? " इस बात को सुनकर बेगम हजरत महल हंस दीं और बोलीं ---- " क्या झाँसी की रानी औरत नहीं है ? अहमदुल्ला ने टोकना चाहा --- " लेकिन वह तो हिन्दू हैं l " इस पर बेगम के माथे पर बल पड़ गए , उनकी आवाज तेज हो गई , वह कहने लगीं ---- " यह किसी को नहीं भूलना चाहिए कि यह देश हिंदू - मुसलमानों का नहीं , मर्दों या औरतों का नहीं , सभी देशवासियों का है l इसकी आन - बान और शान के लिए मर - मिटने का सबको बराबर का हक है और मुझसे मेरे इस हक को कोई नहीं छीन सकता l सबसे पहले मैं हिन्दुस्तान की बेटी हूँ , बाद में अवध की बेगम l "
उनकी भावनाओं को देखकर सभी एक साथ बोल पड़े --- " बेगम साहिबा ! हम सभी आपकी कमान में आजादी की यह जंग लड़ेंगे और जीतेंगे भी l " हिन्दुस्तान आखिरी शहंशाह बहादुरशाह जफर को यह खबर मिली तो फूले न समाये , उन्होंने बेगम साहिबा के पास पैगाम भेजा --- ' हमें फक्र है तुम पर l जब तक बेगम हजरत महल और रानी लक्ष्मीबाई जैसी बेटियां हमारे मुल्क में हैं , कोई भी विदेशी ताकत इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती l इंशाअल्लाह ! हम रहें या न रहें हिन्दुस्तान को आजादी जरुर मिलेगी l हम तुम्हे शुक्रिया अदा करते हैं और तुम्हारे बेटे को अवध का नवाब घोषित करते हैं l " बूढ़े बादशाह के इस पैगाम को बेगम हजरत महल ने अपने सिर से लगाया और अपनी फौज के साथ पहुँच गईं---- चिनहट के मैदान में l जितने दिन यह जंग अली , उतने दिन बेगम हजरत महल खुद हाथी पर बैठकर अपनी फौज का हौसला बढ़ाती रहीं l उनके साहस , शौर्य , शस्त्र - संचालन, व्यूह रचना ने अंगरेजी फौज को मैदान छोड़कर भागने पर मजबूर कर दिया l जनरल आउटरम एवं कॉलिन कैम्पबेल को भी मानना पड़ा कि बेगम हजरत महल ने अंग्रेजी फौज में खौफ पैदा कर दिया था l इतिहासकार ताराचंद ने लिखा है कि --- " 30 जून 1857 से 21 मार्च 1858 तक बेगम हजरत महल ने लखनऊ में नए सिरे से शासन सम्हाला और आजादी की लड़ाई का नेतृत्व किया l " हिन्दुस्तान की बेटी बेगम हजरत महल की ये जंग इतिहास के पन्नों में सदा अमर रहेगी l
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