आजाद हिन्द सरकार के सूचना मंत्री एस . ए. अय्यर ने लिखा है ---- ' सभी चुनौतियों का सामना करने की शक्ति उन्होंने ईश्वर में अपनी अगाध निष्ठा से प्राप्त की थी l नेताजी के आकर्षक व्यक्तित्व और शक्तिशाली नेतृत्व का यह रहस्य था l "
सुभाषचंद्र बोस को गुपचुप तरीके से बर्मा की मांडले जेल भेज दिया गया l यह मांडले जेल - लाला लाजपतराय , लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जैसे महान देशभक्तों के कठोर तप की साक्षी रही थी l तपस्वी क्रांतिकारियों की इस पावन तपोभूमि में पहुंचकर सुभाष आनंदित हो उठे l
2 मई 1925 को उन्होंने महर्षि अरविन्द के प्रिय शिष्य और अपने सहपाठी तथा मित्र दिलीपकुमार राय को पत्र लिखकर अपने ह्रदय के उद्गार व्यक्त करते हुए लिखा ---- " यहाँ रहकर मेरे विचारों में परिवर्तन होने लगा है l इस जेल का वातावरण मेरे मस्तिष्क में दार्शनिक विचार उत्पन्न कर देता है l यहाँ मैंने जीवन के बारे में जो कुछ सीखा है और जो दर्शन मैंने पढ़ा है , वह मेरे लिए लाभकारी है l यदि मनुष्य स्वस्थ रहे और उसे चिंतन के लिए समय मिल जाये तो यहाँ के कष्ट भी सुखमय लगने लगते हैं l इसी जेल की कोठरी में रहकर लोकमान्य तिलक ने गीता रहस्य की रचना की l स्पष्ट है कि बेड़ियों में जकड़े होने पर भी लेखन के समय उनकी आत्मा में परम संतोष और गहन शान्ति थी l हम ऐसे महान देशभक्तों के पदचिन्हों पर चल रहे हैं , यह सोचकर मुझे गौरव और संतोष का अनुभव हो रहा है l मुझे विश्वास है कि इस जेल में मुझे भी आत्मिक शान्ति मिलेगी l "
और मांडले की यह जेल उनके लिए तपोभूमि बन गई l यहाँ रहते हुए उन्होंने स्वयं का विश्लेषण किया , अपने चिंतन और जीवन को निखारा l उन्हें ऐसा लगा कि जैसे एक ईश्वरीय तेज , अन्तरिक्ष से उनमे अवतरित हो रहा है l जेल की यातनाएं उनकी साधनाओं में परिवर्तित होने लगीं l बीतते समय के साथ उनमे एक नव व्यक्तित्व विनिर्मित होने लगा l वे सबके प्रिय महान सेनानी , महानायक नेताजी बन गए l
सुभाषचंद्र बोस को गुपचुप तरीके से बर्मा की मांडले जेल भेज दिया गया l यह मांडले जेल - लाला लाजपतराय , लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक जैसे महान देशभक्तों के कठोर तप की साक्षी रही थी l तपस्वी क्रांतिकारियों की इस पावन तपोभूमि में पहुंचकर सुभाष आनंदित हो उठे l
2 मई 1925 को उन्होंने महर्षि अरविन्द के प्रिय शिष्य और अपने सहपाठी तथा मित्र दिलीपकुमार राय को पत्र लिखकर अपने ह्रदय के उद्गार व्यक्त करते हुए लिखा ---- " यहाँ रहकर मेरे विचारों में परिवर्तन होने लगा है l इस जेल का वातावरण मेरे मस्तिष्क में दार्शनिक विचार उत्पन्न कर देता है l यहाँ मैंने जीवन के बारे में जो कुछ सीखा है और जो दर्शन मैंने पढ़ा है , वह मेरे लिए लाभकारी है l यदि मनुष्य स्वस्थ रहे और उसे चिंतन के लिए समय मिल जाये तो यहाँ के कष्ट भी सुखमय लगने लगते हैं l इसी जेल की कोठरी में रहकर लोकमान्य तिलक ने गीता रहस्य की रचना की l स्पष्ट है कि बेड़ियों में जकड़े होने पर भी लेखन के समय उनकी आत्मा में परम संतोष और गहन शान्ति थी l हम ऐसे महान देशभक्तों के पदचिन्हों पर चल रहे हैं , यह सोचकर मुझे गौरव और संतोष का अनुभव हो रहा है l मुझे विश्वास है कि इस जेल में मुझे भी आत्मिक शान्ति मिलेगी l "
और मांडले की यह जेल उनके लिए तपोभूमि बन गई l यहाँ रहते हुए उन्होंने स्वयं का विश्लेषण किया , अपने चिंतन और जीवन को निखारा l उन्हें ऐसा लगा कि जैसे एक ईश्वरीय तेज , अन्तरिक्ष से उनमे अवतरित हो रहा है l जेल की यातनाएं उनकी साधनाओं में परिवर्तित होने लगीं l बीतते समय के साथ उनमे एक नव व्यक्तित्व विनिर्मित होने लगा l वे सबके प्रिय महान सेनानी , महानायक नेताजी बन गए l
No comments:
Post a Comment