व्यवहार कुशलता से हम न केवल समस्याओं को सुलझा सकते हैं , अपितु समस्याओं को जटिल होने से भी रोक सकते हैं l इस कथन की सत्यता समझाती एक ऐतिहासिक कथा मेवाड़ प्रदेश की है ------ उस समय भारत में अंग्रेजी शासन था l महाराणा फतेहसिंह मेवाड़ के शासक थे l बरसात का मौसम था l उस वर्ष मेवाड़ में ज्यादा वर्षा हुई थी , जिससे फतहसागर झील का एक हिस्सा टूट गया , जिसके बहाव में रेल का पुल टूट गया और पटरियां पानी में बह गईं l यह मामला अदालत में गया l अंग्रेजी शासन ने फैसला सुना दिया कि झील के पानी से हुए नुकसान का मुआवजा महाराणा दें l न्यायालय के फैसले की एक प्रति महाराणा के पास आई l उन्होंने फैसले की रिपोर्ट पढ़ी l रिपोर्ट पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी टिपण्णी अंग्रेजी हुकूमत को भेजी l टिपण्णी में उन्होंने लिखा ---- " न्यायालय का फैसला मुझे मंजूर है l नुकसान का मुआवजा देने को मैं तैयार हूँ , लेकिन एक आपत्ति मेरी ओर से भी है l वह यह कि झील पहले से थी , पुल बाद में बनाया गया l रेल लाइन बाद में बिछी l रेल लाइन और पुल का निर्माण करते समय झील का ध्यान रखना चाहिए था l उनकी इस टिपण्णी पर न्यायालय को अपना फैसला बदलने पर मजबूर होना पड़ा l हर्जाना , मुआवजा सभी उनके लिए माफ कर दिया गया l
इस प्रसंग से स्पष्ट है कि यदि व्यक्ति शांतिपूर्ण तरीके से , विवेक और समझदारी से अपने कार्य करे तो न केवल समस्याओं को सुलझाया जा सकता है , बल्कि उन्हें गंभीर रूप से विकराल होने से भी रोक सकता है l इस परिस्थिति में यदि महाराणा मुआवजा न देने पर अड़ जाते और लड़ने के लिए तैयार हो जाते तो समस्या का शांतिपूर्ण समाधान नहीं हो पाता l
इस प्रसंग से स्पष्ट है कि यदि व्यक्ति शांतिपूर्ण तरीके से , विवेक और समझदारी से अपने कार्य करे तो न केवल समस्याओं को सुलझाया जा सकता है , बल्कि उन्हें गंभीर रूप से विकराल होने से भी रोक सकता है l इस परिस्थिति में यदि महाराणा मुआवजा न देने पर अड़ जाते और लड़ने के लिए तैयार हो जाते तो समस्या का शांतिपूर्ण समाधान नहीं हो पाता l
No comments:
Post a Comment