अहंकार मूढ़ता का पर्याय है l अहंकारी दूसरों जैसा श्रेष्ठ बनना नहीं चाहता , उससे कई गुना श्रेष्ठ दिखना चाहता है l अहंकारी प्रचंड महत्वकांक्षी होता है , लेकिन यह महत्वाकांक्षा कुछ बनने की , गढ़ने की नहीं , बल्कि केवल दिखने की , झलकने की होती है l अहंकारी अपने अलावा किसी और को बर्दाश्त नहीं कर सकता l व्यक्ति का अहंकार ही उसके पतन , पराभव का कारण होता है l
इस सम्बन्ध में एक कथा है ----- देवताओं और असुरों के बीच घमासान युद्ध छिड़ा l आरम्भ में देवता हारने लगे l ब्रह्माजी ने कारण खोजा तो पाया की देवता आलसी और प्रमादी हो गए हैं , इसलिए हार रहे हैं l अत ; उन्होंने भूलोक से महान पराक्रमी और संयमी सम्राट मुचकुन्द को सेनापति बनाया l अब हारते हुए देवता जीतने लगे , युद्ध लंबा चला l फिर पासा पलटा और देवता हारने लगे l अब प्रजापति ने देखा कि विजय मिलते ही मुचकुन्द अहंकारी होने लगा है l
विजय के लिए आवश्यक गुणों में संयम और पराक्रम की तरह निरहंकारिता भी एक महत्वपूर्ण गुण है l वह घटने लगी हो तो समझना चाहिए कि पराभव के दुर्दिन आ गए l
मुचकुन्द को भूल सुधारने और नम्रता का अभ्यास करने को कहा और कार्तिकेय को अब सेनापति बनाया गया l जिनमे यह तीनो ही विशेषताएं थीं , इस कारण वह दैत्य समुदाय पर विजय प्राप्त करने में सफल हुए l
इस सम्बन्ध में एक कथा है ----- देवताओं और असुरों के बीच घमासान युद्ध छिड़ा l आरम्भ में देवता हारने लगे l ब्रह्माजी ने कारण खोजा तो पाया की देवता आलसी और प्रमादी हो गए हैं , इसलिए हार रहे हैं l अत ; उन्होंने भूलोक से महान पराक्रमी और संयमी सम्राट मुचकुन्द को सेनापति बनाया l अब हारते हुए देवता जीतने लगे , युद्ध लंबा चला l फिर पासा पलटा और देवता हारने लगे l अब प्रजापति ने देखा कि विजय मिलते ही मुचकुन्द अहंकारी होने लगा है l
विजय के लिए आवश्यक गुणों में संयम और पराक्रम की तरह निरहंकारिता भी एक महत्वपूर्ण गुण है l वह घटने लगी हो तो समझना चाहिए कि पराभव के दुर्दिन आ गए l
मुचकुन्द को भूल सुधारने और नम्रता का अभ्यास करने को कहा और कार्तिकेय को अब सेनापति बनाया गया l जिनमे यह तीनो ही विशेषताएं थीं , इस कारण वह दैत्य समुदाय पर विजय प्राप्त करने में सफल हुए l
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