' अनावश्यक बोलने में जितनी गलतफहमियाँ और समस्याएं पैदा होती हैं , उतनी मौन से नहीं होतीं हैं l निरर्थक बोलना बहुत थकाने वाली प्रक्रिया है l इससे शरीर में गर्मी पैदा होती है l जब लोग इतने पढ़े - लिखे और बुद्धिजीवी नहीं थे , तब कम बोलते थे और ज्यादा प्रमाणिक थे l '
आज शरीर में उष्णता बढ़ने का एक कारण यह भी है --- निरर्थक बोलना और जरुरत से ज्यादा बोलना l मौन रहने से अनावश्यक कलह - क्लेश नहीं होंगे और शांति का साम्राज्य फैलेगा l
महात्मा गाँधी भी अपनी दिनचर्या में मौन रहने का नियमित अभ्यास करते थे l सोमवार उनके आश्रम में ' मौनवार ' के नाम से जाना जाता था l इस दिन सारे आश्रमवासी मौन रहते थे l महात्मा गाँधी के लिए मौन एक प्रार्थना के समान था l उनका कहना था ---- " बोलना सुन्दर कला है , लेकिन मौन इससे भी ऊँची कला है l मौन सर्वोत्तम भाषण है l अगर एक शब्द से काम चले , तो दो मत बोलो l "
संत एमर्सन का कहना था ---- " आओ हम मौन रहें , ताकि फरिश्तों की कानाफूसियाँ सुन सकें l "
मौन आत्मा का सर्वोत्तम मित्र है l जब हम मौन धारण करते हैं तो सहज ही प्रकृति का अंश बन जाते हैं क्योंकि प्रकृति में तो सर्वत्र मौन पसरा हुआ है l
आज शरीर में उष्णता बढ़ने का एक कारण यह भी है --- निरर्थक बोलना और जरुरत से ज्यादा बोलना l मौन रहने से अनावश्यक कलह - क्लेश नहीं होंगे और शांति का साम्राज्य फैलेगा l
महात्मा गाँधी भी अपनी दिनचर्या में मौन रहने का नियमित अभ्यास करते थे l सोमवार उनके आश्रम में ' मौनवार ' के नाम से जाना जाता था l इस दिन सारे आश्रमवासी मौन रहते थे l महात्मा गाँधी के लिए मौन एक प्रार्थना के समान था l उनका कहना था ---- " बोलना सुन्दर कला है , लेकिन मौन इससे भी ऊँची कला है l मौन सर्वोत्तम भाषण है l अगर एक शब्द से काम चले , तो दो मत बोलो l "
संत एमर्सन का कहना था ---- " आओ हम मौन रहें , ताकि फरिश्तों की कानाफूसियाँ सुन सकें l "
मौन आत्मा का सर्वोत्तम मित्र है l जब हम मौन धारण करते हैं तो सहज ही प्रकृति का अंश बन जाते हैं क्योंकि प्रकृति में तो सर्वत्र मौन पसरा हुआ है l
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