संसार के जितने भी उन्नत और विचारशील देश हैं , वे सब एकाएक ही उन्नत या समृद्ध नहीं हो गए वरन उन्हें ऊँचा उठाने के लिए कितने ही प्रबुद्ध व्यक्तियों ने अपना असाधारण योगदान दिया है l बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक पच्चीस - तीस वर्षों तक रूस की तीन चौथाई से भी अधिक जनसँख्या अशिक्षित थी l फिर 1917 में वहां क्रान्ति हुई , जिसे सफल बनाने में रूस के बुद्धिजीवियों ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की l उस क्रांति की सफलता के पीछे पढ़े - लिखे विचारशीलों की लगन , निष्ठा , परिश्रम और त्याग था l उनका एक ही उद्देश्य था -- राष्ट्र में वैज्ञानिकों , लेखकों , कलाकारों एवं विशेषज्ञों के अभाव की पूर्ति करते हुए राष्ट्र का नव निर्माण l इस आन्दोलन में लेनिन , कोस्तांतिन , इवान पावलोव जैसे व्यक्ति अगुआ थे l इनके अथक परिश्रम और अपूर्व त्याग का परिणाम यह हुआ कि 1960 तक पहुँचते - पहुँचते प्रत्येक व्यक्ति औसत शैक्षणिक योग्यता के साथ राष्ट्र प्रेम अर्जित कर चुका था , और आज रूस की सुद्रढ़ स्थिति से समूचा संसार परिचित है l समाज का मस्तिष्क कहे जाने वाले बुद्धिजीवी , जनमानस को जिस प्रकार का मार्गदर्शन देते हैं , लोकजीवन वैसी ही धारा अपनाता है l
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