रसेल कहते थे कि राजनीतिक प्रतिनिधि आमतौर पर ऐसा मानने लगते हैं कि राजनीति में सज्जनता और नैतिकता की कोई गुंजाइश नहीं है l रसेल ने लिखा है --- " संसद और विधान सभाओं के सदस्य आराम से रहते हैं, मोटी - मोटी दीवारें और असंख्य पुलिस जन उनको जनता की आवाज से बचाए रखते हैं l जैसे - जैसे समय बीतता जाता है उनके मन में उन वचनों की धुंधली सी स्मृति ही रह जाती है जो निर्वाचन के समय जनता को दिए थे l दुर्भाग्य यह है कि समाज के व्यापक हित वास्तव में अमूर्त होते हैं और विधायकों के निजी संकीर्ण हितों को ही जनता का हित मान लिया जाता है l "
रसेल लोकतंत्र और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए निरंतर संगठित प्रतिरोध को अनिवार्य मानते थे l इससे समाज में अव्यवस्था का खतरा पैदा हो सकता है परन्तु यह सर्वशक्तिमान राजसभा से उत्पन्न होने वाली जड़ता की तुलना में यह खतरा नगण्य है l
रसेल गांधीजी की तरह साम्राज्यवाद, आर्थिक - विषमता और राजनीतिक सत्ता के केन्द्रीकरण के प्रबल विरोधी थे l
रसेल लोकतंत्र और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए निरंतर संगठित प्रतिरोध को अनिवार्य मानते थे l इससे समाज में अव्यवस्था का खतरा पैदा हो सकता है परन्तु यह सर्वशक्तिमान राजसभा से उत्पन्न होने वाली जड़ता की तुलना में यह खतरा नगण्य है l
रसेल गांधीजी की तरह साम्राज्यवाद, आर्थिक - विषमता और राजनीतिक सत्ता के केन्द्रीकरण के प्रबल विरोधी थे l
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