गृहस्थ - योग भी योगशास्त्र की एक शाखा माना जाता है और पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में अनेक नारियों ने इसी के द्वारा महान सिद्धियाँ प्राप्त की हैं l बा की सेवा - भावना और परिचर्या भी लगभग निष्काम कर्मयोग की श्रेणी में जा पहुंची थी l एक बार जब गांधीजी ने बा से कहा --- " मैंने तुझे गहने पहनने या अच्छी रेशमी साड़ियाँ पहनने से कब रोका ?
बा ने कुछ गंभीर होकर कहा --- " आपको साधु - संन्यासी बनना है l तब भला मैं मौज - शौक से रहकर क्या करती ? आपका मन जान लेने के बाद मैंने भी अपने मन को मोड़ लिया और दुनिया का रास्ता छोड़ दिया l "
ऐसा था बा और बापू का दाम्पत्य जीवन l
यद्दपि प्रकट में बा और बापू में कहा - सुनी होती जान पड़ती थी , पर आंतरिक रूप से दोनों एक थे , एक दूसरे के गुणों को समझते थे l
एक बार अन्य किसी प्रान्त का युवक आश्रम में आया और आलोचक की तरह गांधीजी से कहा --- " आप सब किसी को तो चाय आदि पीने से रोकते हैं पर बा तो प्रतिदिन दो बार काफी पीती हैं l " तो गांधीजी ने उत्तर दिया ---- " तुमको मालूम है बा ने कितना अधिक त्याग किया है ? कितनी वस्तुओं और आदतों को छोड़ा है ? अब अगर यदि मैं उसकी इस अन्तिम छोटी सी आदत को भी छुड़ाने की कोशिश करूँ तो मुझसा निर्दयी पति और कौन होगा ? "
मेहमानों की व्यवस्था करने में बा गांधीजी के नियमों को भी ढीला कर देती थीं l दीनबंधु एंड्रूज का काम चाय के बिना चल ही नहीं सकता था l पर गांधीजी के पास किसी को चाय कैसे मिलती l इसलिए बा उनको बुलाकर चाय पिलाती थीं l बा के आश्रम में रहने से ही श्री राजगोपालाचारी को चाय मिलती थी l पं. नेहरु भी खास स्वाद वाली चाय बा के कारण ही पा सकते थे l
अपने गुणों के कारण ही गांधीजी के साथ बा ने अपना भी नाम अमर कर लिया l
बा ने कुछ गंभीर होकर कहा --- " आपको साधु - संन्यासी बनना है l तब भला मैं मौज - शौक से रहकर क्या करती ? आपका मन जान लेने के बाद मैंने भी अपने मन को मोड़ लिया और दुनिया का रास्ता छोड़ दिया l "
ऐसा था बा और बापू का दाम्पत्य जीवन l
यद्दपि प्रकट में बा और बापू में कहा - सुनी होती जान पड़ती थी , पर आंतरिक रूप से दोनों एक थे , एक दूसरे के गुणों को समझते थे l
एक बार अन्य किसी प्रान्त का युवक आश्रम में आया और आलोचक की तरह गांधीजी से कहा --- " आप सब किसी को तो चाय आदि पीने से रोकते हैं पर बा तो प्रतिदिन दो बार काफी पीती हैं l " तो गांधीजी ने उत्तर दिया ---- " तुमको मालूम है बा ने कितना अधिक त्याग किया है ? कितनी वस्तुओं और आदतों को छोड़ा है ? अब अगर यदि मैं उसकी इस अन्तिम छोटी सी आदत को भी छुड़ाने की कोशिश करूँ तो मुझसा निर्दयी पति और कौन होगा ? "
मेहमानों की व्यवस्था करने में बा गांधीजी के नियमों को भी ढीला कर देती थीं l दीनबंधु एंड्रूज का काम चाय के बिना चल ही नहीं सकता था l पर गांधीजी के पास किसी को चाय कैसे मिलती l इसलिए बा उनको बुलाकर चाय पिलाती थीं l बा के आश्रम में रहने से ही श्री राजगोपालाचारी को चाय मिलती थी l पं. नेहरु भी खास स्वाद वाली चाय बा के कारण ही पा सकते थे l
अपने गुणों के कारण ही गांधीजी के साथ बा ने अपना भी नाम अमर कर लिया l
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