एक प्रसंग है ---- राजा अश्विनी दत्त को अपने महल , धन - सम्पति व रानी से अत्यंत मोह था l उसका यह मोह शनै; - शनै: बढ़ता ही जा रहा था और इस कारण उन्होंने राज कार्य पर ध्यान देना बंद कर दिया था l यह देखकर प्रधानमंत्री बहुत परेशान हुए और वे अपनी चिंता कुलगुरु संत नागानंद के समक्ष रखने पहुंचे l मंत्री के अनुरोध पर कुलगुरु राजा से मिलने राजमहल आये l राजा ने उनका भव्य स्वागत किया l उन्हें अनेक उपहार भी भेंट किये l
प्रत्युतर में कुलगुरु ने राजा को एक कमल का पुष्प भेंट किया और कहा ---- " राजन ! तुम्हारा उपहार कमल की पंखुड़ियों के भीतर है l " राजा ने कमल कि पंखुड़ियाँ हटाईं तो उन्हें वहां एक भौंरा मरा दिखाई पड़ा l राजा कुलगुरु के इस उपहार का अर्थ समझ नहीं पाए l उनकी उत्सुकता को भांपकर कुलगुरु बोले ---- " राजन ! यह साधारण भौंरा नहीं है , यह राजभौंरा है l राजभौंरे में इतना सामर्थ्य होता है कि वह चाहे तो कठोर लकड़ी को छेदकर निकल जाये , परन्तु वही भौंरा कमल पर आसक्त हो जाता है तो उसकी पंखड़ियों के मध्य फंसकर अपनी जान गँवा बैठता है l " राजा को कुलगुरु का कथन समझ में आ गया और वह मोह छोड़कर प्रजापालन - कर्तव्य में जुट गए l
प्रत्युतर में कुलगुरु ने राजा को एक कमल का पुष्प भेंट किया और कहा ---- " राजन ! तुम्हारा उपहार कमल की पंखुड़ियों के भीतर है l " राजा ने कमल कि पंखुड़ियाँ हटाईं तो उन्हें वहां एक भौंरा मरा दिखाई पड़ा l राजा कुलगुरु के इस उपहार का अर्थ समझ नहीं पाए l उनकी उत्सुकता को भांपकर कुलगुरु बोले ---- " राजन ! यह साधारण भौंरा नहीं है , यह राजभौंरा है l राजभौंरे में इतना सामर्थ्य होता है कि वह चाहे तो कठोर लकड़ी को छेदकर निकल जाये , परन्तु वही भौंरा कमल पर आसक्त हो जाता है तो उसकी पंखड़ियों के मध्य फंसकर अपनी जान गँवा बैठता है l " राजा को कुलगुरु का कथन समझ में आ गया और वह मोह छोड़कर प्रजापालन - कर्तव्य में जुट गए l
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