मनुष्य देह धारण कर ईश्वर धरती पर आते हैं लेकिन मनुष्य अपने स्वार्थ , अहंकार और अपने ही संसार में इस तरह डूबा रहता है कि वह उन्हें पहचान नहीं पाता l बड़ी - बड़ी अवतारी लीलाएं करने के बाद भी लोग भगवान श्रीकृष्ण को समझ नहीं पाए l दुर्योधन हो , शिशुपाल हो या धृतराष्ट्र सभी उन्हें मनुष्य भाव में ही मानते रहे l किसी ने उन्हें यादव पुत्र कहा , किसी ने ग्वाला , किसी ने मायाजाल फ़ैलाने वाला कहा l दुर्योधन ने तो संधि के लिए गए श्रीकृष्ण के लिए सारा जाल ही बुन दिया था कि यहीं इस ग्वाले के बेटे को खत्म कर दिया जाये l भगवान ने जब अपना विराट रूप दिखाया --- ' हाँ दुर्योधन बाँध मुझे , जंजीर बढ़ा कर साध मुझे
यह देख गगन मुझमे लय है , यह देख पवन मुझमे लय ----------
विराट रूप को भी अहंकारी दुर्योधन ने मायाजाल कहा l बाद में जब थोड़ा होश आया तो कहता है --- जानामि धर्म न च मे प्रवृति , जानामि अधर्म न च मे निवृति l
दुर्योधन ने कहा --- मैं धर्म को जानता हूँ किन्तु उस ओर मेरी प्रवृति नहीं है , मैं अधर्म को भी जानता हूँ पर उससे मैं मुक्त नहीं हो पा रहा हूँ l l
अज्ञानी ऐसा ही होता है l
यह देख गगन मुझमे लय है , यह देख पवन मुझमे लय ----------
विराट रूप को भी अहंकारी दुर्योधन ने मायाजाल कहा l बाद में जब थोड़ा होश आया तो कहता है --- जानामि धर्म न च मे प्रवृति , जानामि अधर्म न च मे निवृति l
दुर्योधन ने कहा --- मैं धर्म को जानता हूँ किन्तु उस ओर मेरी प्रवृति नहीं है , मैं अधर्म को भी जानता हूँ पर उससे मैं मुक्त नहीं हो पा रहा हूँ l l
अज्ञानी ऐसा ही होता है l
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