विधाता ने एक बार जय - विजय को धरती पर भेजा और कहा कि पता लगाकर आओ की इस समय धरती पर स्वर्ग का सच्चा अधिकारी कौन है l जय - विजय ने सारी धरती की यात्रा की और देखा कि सभी धार्मिक स्थलों --- मंदिर , मस्जिद , गुरूद्वारे , चर्च , सब में भारी भीड़ है और लोग अपने अपने तरीके से पूजा - उपासना कर रहे हैं l चलते - चलते रात हो गई , वे एक गाँव में पहुंचे l रास्ते में काफी गढ्ढे हैं , कीचड़ भी है l वहां देखा कि एक वृद्ध जो नेत्रहीन है दीपक जलाये बैठा है l
कीचड़ में सने लोगों के हाथ - पैर धुलवाता है , उन्हें कुछ क्षण विश्राम के लिए बैठाकर आगे का रास्ता बताता है l सारी रात पथिकों को प्रकाश दिखाया और प्रात:काल होते ही अपनी चारपाई पर विश्राम करने की व्यवस्था करने लगा l जय - विजय ने उसके पास जाकर पूछा कि यह समय तो पूजा - उपासना का है , तुम नहीं करते ? वृद्ध ने कहा -- मैं नहीं जानता उपासना क्या है , रात पथिकों को रास्ता दिखाने में बीत जाती है और दिन में विश्राम , l इसके अतिरिक्त और कुछ मुझे ज्ञान नहीं l वृद्ध से ज्यादा बात न कर जय - विजय विधाता के पास पहुंचे और धरती से जो सब दस्तावेज तैयार कर के ले गए थे , वे विधाता को दिखाए l
विधाता सब देखने लगे , जिसे ही उनकी द्रष्टि उस वृद्ध के जीवन वृत पर टिकी , जय - विजय ने कहा --- इस बुड्ढे को छोड़िये , इसे तो यह भी नहीं मालूम कि पूजा , जप - तप क्या है ?
विधाता गंभीर हो गए और बोले --- यह तुम्हारा मूल्यांकन है , मेरी द्रष्टि में यही सच्चा भक्त है और स्वर्ग का अधिकारी है l ईश्वर का नाम लेने की अपेक्षा उसकी व्यवस्था में हाथ बंटाने का पुण्य अधिक है l वृद्ध के कर्म साक्षात् ईश्वर की उपासना हैं l
कीचड़ में सने लोगों के हाथ - पैर धुलवाता है , उन्हें कुछ क्षण विश्राम के लिए बैठाकर आगे का रास्ता बताता है l सारी रात पथिकों को प्रकाश दिखाया और प्रात:काल होते ही अपनी चारपाई पर विश्राम करने की व्यवस्था करने लगा l जय - विजय ने उसके पास जाकर पूछा कि यह समय तो पूजा - उपासना का है , तुम नहीं करते ? वृद्ध ने कहा -- मैं नहीं जानता उपासना क्या है , रात पथिकों को रास्ता दिखाने में बीत जाती है और दिन में विश्राम , l इसके अतिरिक्त और कुछ मुझे ज्ञान नहीं l वृद्ध से ज्यादा बात न कर जय - विजय विधाता के पास पहुंचे और धरती से जो सब दस्तावेज तैयार कर के ले गए थे , वे विधाता को दिखाए l
विधाता सब देखने लगे , जिसे ही उनकी द्रष्टि उस वृद्ध के जीवन वृत पर टिकी , जय - विजय ने कहा --- इस बुड्ढे को छोड़िये , इसे तो यह भी नहीं मालूम कि पूजा , जप - तप क्या है ?
विधाता गंभीर हो गए और बोले --- यह तुम्हारा मूल्यांकन है , मेरी द्रष्टि में यही सच्चा भक्त है और स्वर्ग का अधिकारी है l ईश्वर का नाम लेने की अपेक्षा उसकी व्यवस्था में हाथ बंटाने का पुण्य अधिक है l वृद्ध के कर्म साक्षात् ईश्वर की उपासना हैं l
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