ईर्ष्यालु व्यक्ति न खुद चैन से रहता है और न दूसरों को चैन से रहने देता है l वह व्यक्ति जिससे किसी को ईर्ष्या है , यदि आत्मबल संपन्न है , उसमे विवेक बुद्धि है तो वह विभिन्न षडयंत्रों का , आक्रमण का साहस के साथ सामना करता हुआ आगे अपने लक्ष्य की और बढ़ता जाता है और सफल होता है l लेकिन ईर्ष्यालु व्यक्ति अपने हाथों अपना ही नुकसान करता है l उसका सारा समय व उर्जा व्यर्थ के ताना -बाना बुनने में ही खर्च हो जाती है l दूसरों को देखकर चिढ़ना -कुढ़ना उसका स्वभाव बन जाता है , ईर्ष्या की आग में जलकर वह स्वयं अपना सुख - चैन समाप्त कर लेता है l
श्रीरामचरितमानस में एक प्रसंग है ----- जब श्री हनुमानजी सीताजी का पता लगाने के लिए आगे बढ़ते हैं तो उन्हें सिंहिका नामक राक्षसी मिलती है , जिसे उन्होंने मार डाला क्योंकि वह ईर्ष्या का प्रतीक थी l वह उड़ते हुए लोगों की परछाई पकड़कर उन्हें खा जाती थी l ऋषियों का मत है कि ईर्ष्या को जिन्दा नहीं रहने देना चाहिए l ईर्ष्यालु लोग अपनी पूरी उर्जा दूसरों से लड़ने में लगा देते हैं , जबकि यदि मनुष्य को लड़ना है तो उसे अपनी किस्मत से लड़ना चाहिए , ताकि वह उसे बेहतर बना सके l ईर्ष्या छोड़कर मन को शांत रखने से जीवन की अनेक बड़ी - बड़ी समस्याएं आसानी से हल हो जाती हैं l
श्रीरामचरितमानस में एक प्रसंग है ----- जब श्री हनुमानजी सीताजी का पता लगाने के लिए आगे बढ़ते हैं तो उन्हें सिंहिका नामक राक्षसी मिलती है , जिसे उन्होंने मार डाला क्योंकि वह ईर्ष्या का प्रतीक थी l वह उड़ते हुए लोगों की परछाई पकड़कर उन्हें खा जाती थी l ऋषियों का मत है कि ईर्ष्या को जिन्दा नहीं रहने देना चाहिए l ईर्ष्यालु लोग अपनी पूरी उर्जा दूसरों से लड़ने में लगा देते हैं , जबकि यदि मनुष्य को लड़ना है तो उसे अपनी किस्मत से लड़ना चाहिए , ताकि वह उसे बेहतर बना सके l ईर्ष्या छोड़कर मन को शांत रखने से जीवन की अनेक बड़ी - बड़ी समस्याएं आसानी से हल हो जाती हैं l
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